Tuesday, February 9, 2016

कविता: बारिश की कहानी

बारिश की कहानी

हर बारिश अपने में एक कहानी है
किसान के लिए सूखे में वरदान तो बाढ में तबाही है
शहर में ट्रेफिक तो स्कूल में छुट्टी की किलकारी है
प्रेमियों के अरमानों को फिर भिगोने की फरमानी है

चाहो तो स्वागत करके तन मन भिगो डाले
नहीं तो कहीं दुबक कर या भीगने के डर से
अपने को कहीं छुपा डालें
या अपनी यादों के दर्पण में फिर वही मंजर दोहरा डाले

बारिश में भीगने वाले से जरा पूछो कि उसका क्या कहना है
पानी से बचने के लिए उसने क्या क्या कर डाला है
कहीं छतरी उडी जाती है कहीं पैर पानी में छप्प से अंदर चला जाता है
कपडों को कीचड से बचाना भी अपने में एक लडाई है
तभी हर बारिश अपने में एक कहानी है

कभी उसके साथ रास्ते में चल दिए कि अचानक बारिश ने घेरा
पकड कर हाथ किसी दुकान की परछत्ती तले या पेड के नीचे
अपने को कम उनको भीगने से बचाना रहा ज्यादा जरूरी
पर मन में एक बात जरूर आती कि काश यह बारिश एसे ही बरसती रहे
तभी हर बारिश अपने में एक कहानी है

उसको घर तक छोडने का अरमान किया बारिश ने पूरा
हर जाने वाले रिक्शे को रोक उसमें बैठने की उनकी जल्दी मचाना
खुले रिक्शे में बैठकर दुपट्टे से अपने को ढांपकर पानी से बचाना
पानी का हर जुल्फ से बहकर चेहरे में जाकर मुझे भिगोना
तभी हर बारिश अपने में एक कहानी है

उसको घर की सीढियों तक छोड वापस आना
आकर घंटो तक बारिश को ताकना
हर एक पिछले पलों को याद करना
गीले कपडो को बार बार छूकर देखना कि कहीं सूखे तो नही
तभी हर बारिश अपने में एक कहानी है

बारिश आज भी हो रही है
हाथ में चाय की प्याली पकड खिडकी से नजारे दिख रहे है
आज भी एक लडका लडकी उसी तरफ बारिश से बच रहे है
आज भी एक जोडा रिक्शे में बैठकर जा रहा है, दुपटटा हवा में लहरा रहा है
आज भी हर वो मंजर याद आ रहा है
तभी हर बारिश अपने में एक कहानी

- प्रतिमान उनियाल



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