Friday, February 26, 2016

कहानी : कबीले का आदमी

कबीले का आदमी

सब उसे कबीले का आदमी कहते थे। वैसे तो वह औरत थी पर वह कबीले की मुखिया थी, इसलिए वह कबीले का आदमी था। औरत, हां शरीर की बनावट व आवाज से औरत थी पर पहनावा बातचीत का तरीका हुकुम चलाना; उपर से तन कर चलना उसे मर्द बनाता था। गुस्सा तो जैसे नाक पर चढा रहता था, क्या मजाल की कबीले का कोई भी सदस्य उसकी बात को टाल दे। सब उसके गुलाम थे कर भी क्या सकते था कबीला छोड कर कहां जाते। कुछ एक उददंड सदस्यों ने दूसरे कबीलो की सदस्यता के लिए प्रार्थना पत्र भी भेजा था पर इस मुखिया की कुख्याती हर कबीले वालों को पता थी इसलिए सिवाय सहानुभूति के कोई दूसरा जवाब नहीं आता। कुख्याती भी ऐसी की हर औरत को सुनने में शर्म आए तथा मर्द चटखारे मार कर सुने। हर सरकारी मुलाजिम मजिस्ट्रेट पुलिस या यूं कहें कि हर औहदे वाले से उसके गंदे संबंध थे। रात रात भर उनके घरों में पडे रहना भर दुपहरी में घोडे में सवार होकर नए संपर्क की खोज में कबीले से बाहर रहना। कबीले में आने वाले हर माल में उसकी रकम थी। रकम नहीं तो काम नहीं।

कबीले का काम सुचारू रूप से होना तो दूर अब गुजारे लायक चलना भी दूभर हो रहा था। चूंकि सरकार का हाथ उसके सिर पर था तो वह अपनी हरकते जारी करने में स्वछंद थी। क्या करे कैसे करें हर कोई सोचता कभी किसी दिन किसी को जोश आ जाता कि मार दो उसको पर थोडी देर में जोश ठंडा क्योंकि अकेला चना भाड नहीं फोड सकता।

फिर एक दिन ऐसा आया कि सब का सब्र का बांध टूट गया। क्या बच्चा क्या बूढा सब ने जो मिला लाठी बल्लम डंडा उठा के पहुंचे मुखिया के पास। मुखिया का दिमाग ठनका विद्रोह हो गया। मुखिया ने सरकार से विद्रोहियों की शिकायत की पर विद्रोहियों की संख्या देखकर सरकार ने वोट बैंक बचाने की खातिर मुखिया को ही संयम से रहने की हिदायत देकर विद्रोह किसी तरह शांत कराया। सौ चूहे खाकर बिल्ली हज तो कर नहीं सकती चुनांचे कुछ दिन संयम का परिचय दिखाकर धीरे धीरे पुराने ढररे में लौटने लगी। तरीका बदल दिया। किसी दिन एक सदस्य को खास कृपापात्र बनाकर दूसरो पर जुल्म करती तो दूसरे दिन उसी जुल्मी को अपना कृपा पात्र बनाकर पहले वाले पर जुल्म करती। तरकीब काम आ रही थी पर कबीले वालों में कुठंाए बढ रही थी। फिर वहीं ढाक के तीन पात।

एक दिन किसी का दिमाग चला एक वीरान जगह में डरपोक सदस्यों को छोड कर सभी कबीले वालो की बैठक कराई। तय हुआ कि सब सदस्य एक साथ कबीले की सदस्यता से इस्तीफा दे तथा दूर के कबीले में चले जाएं। युक्ति काम आई डरपोक सदस्यों को छोडकर सब ने इस्तीफा देकर कबीला खाली कर दिया। अकेली मुखिया कुछ डरपोको के साथ क्या करती कबीला ठप्प ‍- कुछ दिन के लिए। सरकार ने देखा कि कबीले के बगैर उनके वोट बैंक पर असर पड रहा है, फिर क्या था कबीले में नए सदस्यों की भर्ती हो गई। मुखिया आज भी कबीले का आदमी है, वहीं जुल्म वहीं गुलामी। उन निर्भीक लोगों का क्या हुआ जिन्होने कबीला छोड दिया था। सुना है कि दूसरे कबीले का मुखिया भी इस कबीले के आदमी से उन्नीस नहीं है।

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- प्रतिमान उनियाल

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