Friday, February 26, 2016

कविता: अरे...तुम्हे भी...

कविता:
अरे...तुम्हे भी...

अब तुम्हे क्या हुआ जो इस जंजाल में पड गए
क्या मन की शांति काफी न थी जो इस आफत में पड गए
कभी सोचा भी था कि इसके परिणाम क्या होंगे
दिन का चैन और रात की नींद हराम होंगे

अरे...तुम्हे भी...इश्क हो गया
क्या पता भी है तुम्हे, कि इश्क क्या होता है
भोग विलास से परे यह कैसी दुनिया है
जहां पग पग पर कांटे और चांटे मिलते है
जहां हम अपने और अपनो से ही विद्रोह कर बैठते है

क्या जरूरत थी कि कोई तुम्हे देखकर खुश हो
और इस खुशफहमी को तुम्हे भेंट कर दे
कहीं तुम्हारे भोलेपन को इकरार समझ इजहारे मौहब्बत कर डाली
अब यह तुम को समझना है कि कितनी कठिन डगर तुमने है चुन डाली

कहीं ऐसा तो नहीं कि दोस्ती को ही मोहब्बत मान बैठे
दो दिन के मेल मिलाप को जीवन भर का बंधन मान बैठे
आंखे खुलने के दुस्वप्न को समझ आंखों में काला पट्टा ही बांध दिया
चंद लम्हो की मुस्कुराहट बेसिर पैर की बातो को ही कहीं तुम इश्क तो न समझ बैठे

है इतनी हिम्मत की मां बाप का सामना कर सको
भाई के दिल की पीडा को छोडो भाभी के तानों का पी सको
पडोसियों की मनोहर कहानियों के पात्र बन पूरे जग में ठिठोली करा सको
है इतनी हिम्मत तो ए दोस्त तुझे सलाम तेरे प्यार को सलाम
पर डरता हूं एक बात से, क्या उसमें भी है तेरे जितना जज्बा

इस बात को छोडो कि कितना तुम उसको और वह तुमको जानता है 
पर इस बात को निश्चित करना कि तुम उसको और वह तुमको मानता है
एक कदम यह सोच के आगे बढाना कि वापस न जा पाओगे
अगर उसको पा लिया तो पूरा जग खो बैठोगे

माना कि पूरी दुनिया मोहब्बत के रोग में घिरती है 
फिर अपना दिल और दिमाग को खराब कर देती है
कुछ खुशकिस्मत होते है कि उन्हे अपना जहां मिल जाता है
बाकियों को तो जीवनभर की यातना ही मिलती है

अब बात तुम भर निर्भर है 
फैसला सिर्फ तुम को करना है
हमें तो बस चेताना था सो किया
इस निंद्रा से तुमको ही जागना है।
पर बाद में यह न कहना कि बताया न था
कि इश्क में मिलता कुछ नहीं बस रूसवाई है
दिल के टूटने पर जो रंज ओ गम का खजाना मिलता है
वह जीवन भर साथ रहता है
जो छुपाए न छुपता व मिटाए न मिटता है।

_X_
प्रतिमान उनियाल

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