Wednesday, September 24, 2014

कौवा चला हंस की चाल, हंस भूला अपने ठाट

मैं सामान्यतः ऍफ़ एम चैनल्स केवल घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते हुए ही सुनता हूँ. शुरू से ही पसंदीदा एयर गोल्ड रहा है क्योंकि इसमें समाचारों के अलावा समसामयिक विषयों पर कार्यक्रम होते है और फिर पुराने गाने। जब इनके कार्यक्रम बहुत बोर करते है तो प्राइवेट चैनल्स जिसमे तो बाढ़ सी लगी है सुनता हूँ. बिग ऍफ़ एम, रेडियो सिटी,रेडियो मिर्ची, रेड ऍफ़ एम, हिट ऍफ़ एम. यह मेरा सुनने का वरीयता क्रम भी है.

रेडियो जगत में आकाशवाणी की भूमिका कोई नहीं भूल सकता। प्राइवेट ऍफ़ एम चैनल्स की बाढ़ आने के बावजूद अगर बौद्धिक व विचारणीय कार्यक्रम आते है तो केवल आकाशवाणी के चैनल्स पर. AIR रेनबो, AIR गोल्ड आज भी बहुत प्रासंगिक कार्यक्रम प्रस्तुत करता आया है.

आकाशवाणी के ऍफ़ एम चैनल्स की दिक्कत यही है की कार्यक्रमों का बेहद ही भोंडे तरीके से प्रस्तुतीकरण होता है, उद्घोषकों और वाचको को जरा भी इल्म नहीं होता की उनके बोलने के तरीके से श्रोताओं को बांधा नहीं जा सकता। उनको बस लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़नी है वह भी बिलकुल सपाट और बिना किसी भाव के.

इसके उलट प्राइवेट ऍफ़ एम चैनल्स में कार्यक्रमों के नाम पर सिर्फ शोर शराबा, एक दूसरे का मजाक उड़ाना जिसे यह लोग मुर्गा या बकरा बनाना कहते है. एक चैनल में शाम को एक कार्यक्रमों आता है सिटी का ठेका, दूसरे में उसी समय आता है मिर्ची मुर्गा नावेद के साथ. (नावेद भाई से माफ़ी, वह मेरे फ्रेंड लिस्ट में है, मुझे पता है की वह इस को पढ़ने के बाद मुझे हटा देंगे, पर यह मेरी निजी राय है)
 बाकि  में भी कुछ इसी तरह के नाम से ही जगजाहिर अदभुत कार्यक्रम आते है. मंशा होती है ऑफिस से थके लोगों को हसाना। पर दूसरे के ऊपर हंस कर. कई बार तो भोंडेपन और गालियों की इतनी भरमार होती है की इसमें हंसी नहीं, कोफ़्त होती है.

इस भोंडेपन की भीड़ में कुछ चैनल सच में आकाशवाणी के समतुल्य कुछ नया कर रहे है. मेरा रेडियो सुनने का समय भी निश्चित सा ही है. सुबह 8:10 से 9 बजे तक और शाम को 6:15 से 7:15 बजे तक. यह समय मेरी यात्रा का होता है. एक चैनल है बिग एफएम उसमे हाल ही में एक नया कार्यक्रम शुरू हुआ है दिल्ली मेरी जान जो की दीपक और ऋचा अनिरुद्ध प्रस्तुत करते है. हर रोज सुबह 8 से 9 दिल्ली से जुड़ा कोई मुद्दा। जैसे आज का मुद्दा था कि त्योहारों खासकर रामलीला और दुर्गा पूजा के अवसर पर लाउडस्पीकर का शोर. इसमें दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर लॉ एंड आर्डर ने जानकारी दी कि वैसे तो लाउडस्पीकर चलाने की तय सीमा रात 10 बजे है पर इन त्योहारों में यह सीमा रात बारह बजे है. इसके बाद पुलिस खुद भी या कोई भी 100 नंबर में शिकायत कर सकता है और इसके बाद भी शोर बंद ना हो तो लाउडस्पीकर सिस्टम जब्त हो सकता है.

शायद कल, इस कार्यक्रम में दिल्ली की सड़कों का हाल बताया। एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की सड़के भारत की सबसे अच्छी बनी सड़के है. पर वही बताया की संगम विहार में जब कई सालों तक सड़क नहीं बनी तो वहां  की RWA (Residents Welfare Association) और नागरिकों  नें खुद अपने पैसे लगा कर सड़क बनाई. खर्चा आया Rs 350 प्रति वर्ग फुट. सड़क इतनी बेहतरीन की कोई गड्ढा नहीं.  इतने काम रेट में तो कोई भी सरकारी एजेंसी नहीं बना सकती। इसमें PWD के चीफ इंजीनियर साहब ने जानकारी दी कि कोई भी नागरिक PWD के 24 घंटे के टोल फ्री नंबर में फ़ोन कर के टूटी सड़कों की जानकारी दे सकता है और अगले 24 घंटों में सड़क की मरम्मत हो जाएगी।
इससे पहले के कार्यक्रमों में डीटीसी बस सेवा, ऑटोरिकशा, पानी, बिजली आदि के कई मुद्दे उठाएं।

उधर एयर गोल्ड में सुबह 8:30 बजे गाते गुनगुनाते आता है. इसमें वाचक मुद्दे उठाती है जैसे दोस्ती बनाये रखना कितना जरूरी है, सब्जियों के लाभ, बच्चों को पढ़ने की आदत डलवाएं, पुराने रिश्तों को किस तरह संभल कर रखे. पूरे आधे घंटे, वाचक की चकल्लस, वह भी एक ही भाव में. कभी मुश्किल शब्द आये तो अटक जाना  और फिर  कहना माफ़ कीजिए यह सही शब्द है. इनको कौन समझाए की श्रोताओं में अब वो धैर्य नहीं है कि पढ़े हुए शब्दों को सुने और सराहे। आख़िर के 10 मिनट में सन्देश पढ़ने का समय. ज्यादातर बार हर रोज एक  जैसे नामों की पुनरावृति जैसे बाजार सीताराम से नन्हे पहलवान, मोती नगर से बंटी ग्रोवर … और इनके मम्मी पापा  आदि इत्यादि।

आकाशवाणी को अगर इस चैनल्स की स्पर्धा में रहना है तो अपना कलेवर थोड़ा बदलना होगा। वाचकों को स्किप्ट भले ही दी जाये पर वह कुछ तो भाव डाले। भले ही इन एफएम चैनल्स को पूरे देश में दथ के माध्यम से सुना जा सकता हो पर विषय भी समसामयिक लाने होगे. आज हर व्यक्ति के पास मोबाइल है जिसमे रेडियो आता है. अगर पैठ बढ़ानी है तो आम जनता की नब्ज पकड़ी होगी और उनसे जुड़ना होगा।

प्रतिमान उनियाल