Tuesday, December 23, 2014

भगवान को ढूंढता PK

भगवान को ढूंढता PK
एक दूसरे ग्रह का जीव ही हमें बता सकता है की हमारा भगवान कौन है. यहाँ धरती पर हम सब रॉंग नंबर्स को ही फॉलो कर रहे है. असली भगवान, जिसने हम सबको बनाया है, उन्ही को भूल गए. इस ग्रह के जीव में तो पहले से ही, जन्म के फ़ौरन बाद से ही धर्म का ठप्पा लग जाता है और एक भगवान बता दिए जाते है. मेरा भगवान, तेरा भगवान.
और हम सब का भगवान, जिसने यह सृष्टी रची, वह तो भूल ही गए.
ऋग्वेद के नासदीय सूक्त, दशमी मंडल में कहा गया है "सृष्टी से पहले सत्य नही था, असत्य भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं, छिपा था क्या , कहाँ, किसने ढका था, उस पल को अटल, अगम जल भी कहाँ था. नहीं थी मृत्यु, थी नहीं अमरता भी नहीं, नहीं था दिन, रात भी नहीं, हवा भी नहीं। सांस थी स्वयमे फिर भी, नहीं था कोई भी कुछ भी, परम तत्त्व से अलग या पर भी.... सृष्टी को रचा है जिसने, उसको जाना है किसने। .... सृष्टी का कौन है करता, ऊँचे आकाश में रहता, सदा अध्यक्ष बना रहता। वही सच में जानता, या नहीं भी जानता, है किसी को नहीं पता".
PK भी यही कह रहा है की हमारी धरती एक छोटा सा गोला, पता नहीं ऐसे कितने ग्रह, कितनी आकाश गंगा, असीम और अनंत अंतरिक्ष। और फिर भी हम एक दूसरे के भगवान से लड़ रहे है. मेरी कमीज तेरी कमीज से ज्यादा सफ़ेद।
PK अलग है, ओह माय गॉड फिल्म से भी अलग है. उसमे इसी धरती के भगवान है. पर PK तो पूरी सृष्टी का भगवान तलाश कर रहा है.
एकबार PK देखो तो सही, धर्म का चश्मा उतार कर. पता चले की बाद में आपने कहना शुरू कर दिया की फिल्म में एक धर्म की ज्यादा कुरूपता दिखाई है, दूसरे की कम वह भी तब जब हीरो उसी दूसरे धर्म का है.

रिग वेद सूक्ति : https://www.youtube.com/watch?v=xoiEJQUCxxs
PK ऑफिसियल ट्रेलर: https://www.youtube.com/watch?v=82ZEDGPCkT8

Its PRATIMAN UNIYAL Presentation...

Wednesday, December 17, 2014

इंसानियत के लिए काला दिन

क्या मजहब, क्या सीमायें, इस नृशंस हत्याकांड ने सबको रुला दिया। किस मजहब में ये लिखा है की अपने ही बच्चों को मारो। बच्चो का एक ही मजहब होता, वह है उनका बचपन। किसी भी बच्चे की हंसी, आपके ग़मगीन चेहरे में भी मुस्कान ला सकती है. कोई भी रोता हुआ बच्चा, आपका दिल कंपा सकता है. एक बार तो पूछ ही लेते हो की बच्चे क्या हुआ। तब कौन सा मजहब सामने आता है.
बच्चो के नरसंहार में पूरी दुनिया शोकाकुल है, तो कुछ सड़ांध भरी मानसिकता वाले यह कहते हुए नहीं लजा रहे की 'जैसा बोया है, वैसा ही काट रहे है' या यही बच्चे कल को 'आतंकवादी बन जाते' . थू है ऐसी मानसिकता पर.
जो कल पाकिस्तान में हुआ, भगवान / ख़ुदा / गॉड ना करे किसी और देश की माँ या पिता के साथ हो. होश में आ जाओ इस धरती में रहने वाले लोगों।
फेसबुक या अन्य ऑनलाइन माध्यम से अनेक शोकाकुल लोग जिनकी आत्मा अभी तक जिन्दा है अपनी संवेदनाएं, पीड़ाएँ कुछ इस तरह व्यक्त कर रहे है: साभार सहित
मनीष मिश्रा...
पाकिस्तान में कैसी होगी आज उस अभागी माँ की हालत जिसके बच्चे ने आज स्कूल जाने से मना किया होगा और उस माँ ने उसे ज़बरदस्ती स्कूल भेजा होगा?
ऐ तालिबान तू बच्चों और महिलाओं पर क्यूं जुल्म करता है ??? क्या तुझे मर्दों से डर लगता है !!! अगर तुममें मर्दानगी होती और बदला लेना ही था, तो उन पाकिस्तानी फौजियों से लेते, ना कि उनके मासूम बच्चों से।।। खुदा की सबसे कीमती नेमत हैं जो बंदे, उन मासूमों की जान क्यूं लेता है ??
तालिबान शर्म करो ! 150 मासूम बच्चों की मौत से रुह थर्राई, आवाज भर्राई और आंखें भर आईं हैं....
शंभुनाथ शुक्ल...
वे अरबी बोलते हुए आए और फारसी बोलते हुए चले गए पर इतनी देर में उन्होंने अपने खुदा के नाम पर हिन्दवी बोलने वाले 140 बच्चे ज़िबह कर दिए।
ओम थानवी...
पेशावर में तालिबान की कायराना-सिरफिराना हरकत की कोई किन शब्दों में निंदा करे - बदज़ात कमीनों ने बुरे से बुरे शब्दों को शर्मिंदा कर दिया है।
ओम राठौर...
इंसान तो रोज़ मरते हैं कल भगवान को मार दिया गया वो भी भगवान के नाम पर.
बच्चों में भगवान बसते हैं जाने कब से सुनते आये हैं। चलो अच्छा किया बड़ों की ऐसी बेदर्द दुनिया में अब उन्हें घुंट घुंट के नहीं जीना होगा।
ईश्वर को तो मार दिया अब किससे उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करूँ
प्रभात कुमार उपाध्याय...
उन्होंने मासूम बच्चों को नहीं मारा है, बल्कि अपने मजहब और खुदा की हत्या की है।
कुछ खिलौनें कभी आंगन में दिखाई देते,
काश हम भी किसी बच्चे को मिठाई देते
पूजा महाजन गुप्ता और आशा लाल टम्टा:
खून किसी का भी गिरे यहां
नस्ल-ए-आदम का खून है आखिर
बच्चे सरहद पार के ही सही
किसी की छाती का सुकून है आखिर
अभय मेहता...
अगर कहीं खुदा होता तो वो भी मर गया होता। बीते 24 घंटे में दुनिया की हर माँ 144 बार मरी और हर बाप 144 बार खून के आंसू रोया। यह सिर्फ 144 बच्चों की नृशंस हत्या नहीं। हम सबका खून वहा है।
और हाँ यह मत समझिएगा की यह हैवानियत सरहद पार की है। दरअसल वहां के बेवकूफ , कमअक्ल और कमजर्फ हुक्मरनों नें जो फसल बोई थी उसकी कीमत बच्चों को जान देकर चुकानी पड़ी। चिंता इस बात की है यह सब जानते और देखते हुए भी हमारे यहाँ वैसी ही फसल की वुबाई जारी है । हमारे नेता और हम भी उसी ख़ूनी रस्ते पे आगे बढ़ रहे हैं।
जिन्होंने बच्चों को मारा वो खुदा के बंदे नहीं हो सकते। वो इंसानी शक्ल में पैदा हुए हैवान थे। पेशावर में जो हुआ उससे बुरा कुछ हो नहीं सकता। उन हैवानो को पता नहीं की उनकी करतूत से उनका खुदा भी रो पड़ा होगा। वैसे भी धरती पे खुदा का दर्जा रखने वालीं सैकड़ों माओं को खून के आंसू रुला ही दिया।
सीधे कहें तो पकिस्तान में आज इंसानियत का खून हो गया। धर्म के नाम पर इससे बड़ा अधर्म नहीं हो सकता।
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।
Rajkumari Tankha...
Black day for humanity. Shame on Taliban...killing innocent kids is beyond the comprehension of any sane person...i wish those who indulged in this act meet with similar fate...my heart goes out for parents of victims. May God give them courage and Peace...
Kapil Sharma...
I love kids..kids r innocent souls n they r near to god.. Bcoz they cant think what is good n what is bad.. They r just innocent.. Jis ne b jis b maksad se peshawar me yeh gandi aur napaak harkat ki hai.. Just want to tell them.. K tum logo'n ko kabhi sukoon nahi milega.. kaash main apne haatho'n se tum sabko maar sakta. tum log insaniyat k naam pe kalank ho. laahnat hai tumpe
Shagun Sehgal Garg...
I pray n only pray for those who have lost their hearts today .. This tragedy is irreparable!
Sujith Nayar...
The Smallest Coffins are the Heaviest
Yasar Sadiq...
Another incidence calling for awareness of real Islam, not the Islam that is portrayed by these terrorists... This is absolutely not as per the teachings of Islam....
Shame on the peoples who committed this crime...
Prayers for children and their families
Aamir Hashmi...
Frustrated to spread their sick ideologies, they kill innocent people. Gruesome actions shows the real face of their so-called 'right path'. Pakistan Taliban first try to be a good student of religion then try to teach it. Your vagabond ways are tarnishing the image of the people who firmly believe in their religion...
Its a PRATIMAN UNIYAL Presentation

Friday, December 12, 2014

Revisiting Bhopal Gas Tragedy through Film Bhopal - A Prayer for Rain

Revisiting Bhopal Gas Tragedy through Film Bhopal - A Prayer for Rain

Warren Anderson - Man behind genocide of 30,000 innocent Indians on
intervening night of December 2-3, 1984 in Bhopal. 40 tonnes of poisonous methyl isocyanate (MIC) gas engulfed the whole Bhopal
Film Bhopal - A Prayer for Rain is an extraordinary effort by Director Ravi Kumar and Sahara Films to bring forward the black night of 1984, which even after 30 years is creating its repercussion.
This film tried to open the closet full of skeletons depicting the nexus between the then State Government, Union Government and Union Carbide.
The credits at the end of film does not show the name of the artists or technical crew of film rather it shows the horrific details:
1. Anderson was declared the main defendant in 1992. He remains fugitive from justice in Indian Courts. He lived in Florida till he died on September 29, 2014
2. Seven Indian Carbide staff were convicted of 'death by negligence' in 2010. They were fined $2000 each
3. In 1982, Carbide Auditors warned of the potential of a runaway reaction
4 Carbide refused antidote and maintained that MIC was harmless.
5 Carbide insisted the accident was an act of sabotage by an employee
6 Around 10,000 bodies were counted the morning after
7 Compensation - Union carbide paid $470 million. Per dead body $300
6 Still now approximately 450 victims visit hospital everyday
7 Union Carbide was taken over by Dow Chemicals in 2001. Dow refuses any liability
8 Union Carbide never apologized.
A MUST WATCH FILM...Not for entertainment sake....but to see the future by peeking into the past.
At the time of Bhopal tragedy Late Arjun Singh was the Chief Minister of Madhya Pradesh. Late Rajeev Gandhi was Prime Minister of India. Late Shri Gyani Jail Singh was President of India
THERE ARE MANY MORE UNION CARBIDES IN INDIA, READY FOR STARTING DANCE OF DEATH....
A PRATIMAN UNIYAL Presentation
Warren Anderson
Bhopal, day after the tragedy

Bhopal-A Prayer for Rain Poster

Monday, November 10, 2014

Rang Rasiya, a saga lost between Colour, Celluloid and Censor

Rang Rasiya, a saga lost between Colour, Celluloid and Censor

Rang Rasiya, very aptly titled for Raja Ravi Varma, a painter who was Rasiya (lover) of Colours. His Art depicted wide canvas of figurative, narrative of Hindu mythology, stories and legends. Raja Ravi Varma had given human shape to Gods and Goddesses. Each of his painting is a narration, a saga -  Ramayan, Shakuntala, Mahabharat, Yasoda with Bala Krishna, Lady Giving Alms at the Temple, Simhaka and Sairandhri from Mahabharata.  

It was indeed very difficult for film maker Ketan Mehta to bring the aura of Raja Ravi Varma into celluloid of 132 minutes. He indeed done it well but was somehow lacking into that artistic aroma which was aroused by Late M.F. Hussain in his Gaja Gamini (2000) or Meenaxi (2004). That is the difference between an artist making a movie which was itself a canvas and a filmmaker making a film on painter.

Ketan Mehta had a chance to capture Raja Ravi Varma inside 132 minutes but some how it had depicted struggler and not Rasiya of Colours. In film Raja Ravi Varma was seen struggling with King of Travancore, King of Baroda for name, fame, Money.  And of course, struggle with fundamentalists and British Court for taking back his glory. His Rasiya side was kept limited to Kamini and Sugandha only.
He was definitely not Kaam Rasiya but Rang Rasiya i.e lover of colours, lover of art, lover of canvas. One who can smell the undrawn painting by visualizing it, one who can see the colours of still born creation by imagination. That was Raja Ravi Varma, the great Painter, India had in 19th Century.

It is indeed unfortunate for Indian Art that our countrymen knows about MF Hussain, Anjolie Ela Menon, Jatin Das, Manjit Bawa, FN Souza, S.H. Raza, Satish Gujaral, but have no information about Raja Ravi Varma, Amrita Shergill, Abanindranath Tagore (not to confuse with Gurudev Ravindra Nath Tagore), Gaganendranath Tagore.

Raja Ravi Varma, truly deserves much more appreciation, respect and in depth analysis than this movie Rang Rasiya. But for those who does not know much about Raja Ravi Varma but appreciate meaningful films, then must watch this movie.  Randeep Hooda has justified as Raja Ravi Varma within the limitation of cinematic framework. Nandana Sen as Sugandha brought the graceful beauty of courtesan. Actor Jim Boeven as Fritz Schleizer (German Friend of Raja Ravi Varma) has proved his potential. Now we know that how paintings of Raja Ravi Varma was circulated to masses all over India.

A vital piece of information about this film - Rang Rasiya was made in 2008, and even premiered at Cannes Festival, however was not released in India, because of certain bold scenes. The film was finally given a theatrical release after six years in 2014.

If in any film actors like – Paresh Rawal, Ashish Vidyarthy,  Darshan Jariwala, Sachin Khedekar, Vikram Gokhale, Suhasini Mulay- are present, it means that this film is indeed special visual treat, which it is, really….

-          Pratiman Uniyal


Thursday, October 9, 2014

हैदर फिल्म

हैदर फिल्म देखी। इसको डार्क (Dark) फिल्म कह सकते है. डार्क क्यों, क्योंकि इसमें कश्मीर की स्याह छवि है, इसमें रिश्तो की कुरूपता है, इसमें बदले की भयावहता है, इसमें जज्बातों की राख़ है.
कई साल पहले माचिस आई थी. वह भी एक डार्क फिल्म थी. उसमे पंजाब था पर आज पंजाब बिलकुल बदल गया है, अपना हो गया है.
हैदर देखने के बाद उम्मीद है की भारत के हम बाकी लोगों की सोच कुछ बदलेगी। कश्मीरी दोहरी मार झेल रहे है.... सीमा पार आतंकवाद और राजनीति। इस फिल्म ने एक चेहरा दिखाया जो की अपने आप नहीं बना बल्कि हालात ने बनाया।
माचिस के बाद पंजाब अपना हो गया अब हैदर के बाद कश्मीर और कश्मीरी अपने हो जायेंगे, ऐसी उम्मीद है शायद।
दोनों फिल्मो में समानता है - तब्बू, गुलज़ार, विशाल भरद्वाज, विभत्स्ता और एक अधूरा अंत.
हैदर के गाने - फैज़ अहमद फैज़ और गुलज़ार साहब - संगीत खुद विशाल भारद्वाज का- ऐसा लगा कि कश्मीर स्क्रीन फाड़े सामने खड़ा है.
हाँ यह कहना भी वाजिब है की हैदर फिल्म शेक्सपीयर के हैमलेट का रूपांतरण है. बिलकुल है पर कश्मीरी तरीके है, भारतीय तरीके से.
फिल्म का अंत दर्शकों के विवेक पर है - वाजिब, गैर वाजिब, अधूरा, अर्ध सत्य... आदि इत्यादि
- प्रतिमान उनियाल

Wednesday, September 24, 2014

कौवा चला हंस की चाल, हंस भूला अपने ठाट

मैं सामान्यतः ऍफ़ एम चैनल्स केवल घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते हुए ही सुनता हूँ. शुरू से ही पसंदीदा एयर गोल्ड रहा है क्योंकि इसमें समाचारों के अलावा समसामयिक विषयों पर कार्यक्रम होते है और फिर पुराने गाने। जब इनके कार्यक्रम बहुत बोर करते है तो प्राइवेट चैनल्स जिसमे तो बाढ़ सी लगी है सुनता हूँ. बिग ऍफ़ एम, रेडियो सिटी,रेडियो मिर्ची, रेड ऍफ़ एम, हिट ऍफ़ एम. यह मेरा सुनने का वरीयता क्रम भी है.

रेडियो जगत में आकाशवाणी की भूमिका कोई नहीं भूल सकता। प्राइवेट ऍफ़ एम चैनल्स की बाढ़ आने के बावजूद अगर बौद्धिक व विचारणीय कार्यक्रम आते है तो केवल आकाशवाणी के चैनल्स पर. AIR रेनबो, AIR गोल्ड आज भी बहुत प्रासंगिक कार्यक्रम प्रस्तुत करता आया है.

आकाशवाणी के ऍफ़ एम चैनल्स की दिक्कत यही है की कार्यक्रमों का बेहद ही भोंडे तरीके से प्रस्तुतीकरण होता है, उद्घोषकों और वाचको को जरा भी इल्म नहीं होता की उनके बोलने के तरीके से श्रोताओं को बांधा नहीं जा सकता। उनको बस लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़नी है वह भी बिलकुल सपाट और बिना किसी भाव के.

इसके उलट प्राइवेट ऍफ़ एम चैनल्स में कार्यक्रमों के नाम पर सिर्फ शोर शराबा, एक दूसरे का मजाक उड़ाना जिसे यह लोग मुर्गा या बकरा बनाना कहते है. एक चैनल में शाम को एक कार्यक्रमों आता है सिटी का ठेका, दूसरे में उसी समय आता है मिर्ची मुर्गा नावेद के साथ. (नावेद भाई से माफ़ी, वह मेरे फ्रेंड लिस्ट में है, मुझे पता है की वह इस को पढ़ने के बाद मुझे हटा देंगे, पर यह मेरी निजी राय है)
 बाकि  में भी कुछ इसी तरह के नाम से ही जगजाहिर अदभुत कार्यक्रम आते है. मंशा होती है ऑफिस से थके लोगों को हसाना। पर दूसरे के ऊपर हंस कर. कई बार तो भोंडेपन और गालियों की इतनी भरमार होती है की इसमें हंसी नहीं, कोफ़्त होती है.

इस भोंडेपन की भीड़ में कुछ चैनल सच में आकाशवाणी के समतुल्य कुछ नया कर रहे है. मेरा रेडियो सुनने का समय भी निश्चित सा ही है. सुबह 8:10 से 9 बजे तक और शाम को 6:15 से 7:15 बजे तक. यह समय मेरी यात्रा का होता है. एक चैनल है बिग एफएम उसमे हाल ही में एक नया कार्यक्रम शुरू हुआ है दिल्ली मेरी जान जो की दीपक और ऋचा अनिरुद्ध प्रस्तुत करते है. हर रोज सुबह 8 से 9 दिल्ली से जुड़ा कोई मुद्दा। जैसे आज का मुद्दा था कि त्योहारों खासकर रामलीला और दुर्गा पूजा के अवसर पर लाउडस्पीकर का शोर. इसमें दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर लॉ एंड आर्डर ने जानकारी दी कि वैसे तो लाउडस्पीकर चलाने की तय सीमा रात 10 बजे है पर इन त्योहारों में यह सीमा रात बारह बजे है. इसके बाद पुलिस खुद भी या कोई भी 100 नंबर में शिकायत कर सकता है और इसके बाद भी शोर बंद ना हो तो लाउडस्पीकर सिस्टम जब्त हो सकता है.

शायद कल, इस कार्यक्रम में दिल्ली की सड़कों का हाल बताया। एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की सड़के भारत की सबसे अच्छी बनी सड़के है. पर वही बताया की संगम विहार में जब कई सालों तक सड़क नहीं बनी तो वहां  की RWA (Residents Welfare Association) और नागरिकों  नें खुद अपने पैसे लगा कर सड़क बनाई. खर्चा आया Rs 350 प्रति वर्ग फुट. सड़क इतनी बेहतरीन की कोई गड्ढा नहीं.  इतने काम रेट में तो कोई भी सरकारी एजेंसी नहीं बना सकती। इसमें PWD के चीफ इंजीनियर साहब ने जानकारी दी कि कोई भी नागरिक PWD के 24 घंटे के टोल फ्री नंबर में फ़ोन कर के टूटी सड़कों की जानकारी दे सकता है और अगले 24 घंटों में सड़क की मरम्मत हो जाएगी।
इससे पहले के कार्यक्रमों में डीटीसी बस सेवा, ऑटोरिकशा, पानी, बिजली आदि के कई मुद्दे उठाएं।

उधर एयर गोल्ड में सुबह 8:30 बजे गाते गुनगुनाते आता है. इसमें वाचक मुद्दे उठाती है जैसे दोस्ती बनाये रखना कितना जरूरी है, सब्जियों के लाभ, बच्चों को पढ़ने की आदत डलवाएं, पुराने रिश्तों को किस तरह संभल कर रखे. पूरे आधे घंटे, वाचक की चकल्लस, वह भी एक ही भाव में. कभी मुश्किल शब्द आये तो अटक जाना  और फिर  कहना माफ़ कीजिए यह सही शब्द है. इनको कौन समझाए की श्रोताओं में अब वो धैर्य नहीं है कि पढ़े हुए शब्दों को सुने और सराहे। आख़िर के 10 मिनट में सन्देश पढ़ने का समय. ज्यादातर बार हर रोज एक  जैसे नामों की पुनरावृति जैसे बाजार सीताराम से नन्हे पहलवान, मोती नगर से बंटी ग्रोवर … और इनके मम्मी पापा  आदि इत्यादि।

आकाशवाणी को अगर इस चैनल्स की स्पर्धा में रहना है तो अपना कलेवर थोड़ा बदलना होगा। वाचकों को स्किप्ट भले ही दी जाये पर वह कुछ तो भाव डाले। भले ही इन एफएम चैनल्स को पूरे देश में दथ के माध्यम से सुना जा सकता हो पर विषय भी समसामयिक लाने होगे. आज हर व्यक्ति के पास मोबाइल है जिसमे रेडियो आता है. अगर पैठ बढ़ानी है तो आम जनता की नब्ज पकड़ी होगी और उनसे जुड़ना होगा।

प्रतिमान उनियाल 

Tuesday, February 11, 2014

दिल्ली के मुख्य्मंत्री श्री अरविंद केजरीवाल का NDTV में इंटरव्यू

दिल्ली के मुख्य्मंत्री श्री अरविंद केजरीवाल का अभी NDTV में इंटरव्यू देखा. इस इंटरव्यू में एक ख़ास बात रही कि उन्होंने २०० लोगों के बीच में दिल्ली लिटरेचर फेस्ट में बरखा दत्त को इंटरव्यू दिया। ना तो छुप कर और अपनी पसंद के बंद कमरे में दिया, ना ही बीच इंटरव्यू में माइक फ़ेंक कर भाग गए.

उन्होंने मोहल्ला सभा के बारे विस्तार से बताया जो कि गांधीजी के गाँव गाँव स्वराज का फैलाव है. उन्होंने साफ़ किया कि मोहल्ला सभा के द्वारा सिर्फ अपनी बात आगे रखी जायेगी ना कि उनका कानूनी प्रभाव होगा। उन्होंने खाप पंचायत को भीड़ का एक जगह इकट्ठा होना बताया। सबसे बढ़िया कहा कि अगर खाप किसी लड़का लड़की को मारने का फरमान जारी करते है तो उस पंचायत में आयी सभी लोगों पर धारा ३०२ में केस चलना चाहिए। उनके अनुसार मोहल्ला सभा इलाके कि पानी, सड़क पर ध्यान देगी और सरकार महत्त्वपूर्ण कामों पर.

केजरीवाल ने कहा कि जनलोकपाल बिल और स्वराज लाना ही उनका लक्ष्य है और अगर कांग्रेस साथ नहीं देती तो और यह बिल पास नहीं होता तो वह इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने बताया कि भारतीय जनता पार्टी जो लोकपाल विधेयक उत्तराखंड में लाये थे वैसा ही यह जनलोकपाल बिल है तो फिर क्यों विरोध कर रही है

सबसे ध्यान देने वाली बात उन्होंने कही कि आने वाले लोकसभा में बहुमत किसी को नहीं मिलेगा। जोड़ तोड़ कि राजनीती होगी, तो हम प्रधानमंत्री किसको बनता देखेंगे। राहुल गांधी को, नरेंद्र मोदी को या मायावती, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, ममता बनेर्जी, शरद यादव। तो फिर क्या अंतर रह जाएगा अब कि सरकार में और तब कि सरकार में. फिर से भ्रष्ट लोगों कि सरकार आ जायेगी।

आम आदमी पार्टी आगामी लोक सभा में सरकार नहीं बना पायेगी पर कम से कम भ्रष्टाचारी नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. आप पार्टी किसी भी फ्रंट का चाहे UPA, NDA , थर्ड फ्रंट, फोर्थ फ्रंट का समर्थन नहीं करेगी। सिर्फ एक लक्ष्य भारत कि राजनीती को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है और वह हम सब आम जनता ही कर सकती है.

प्रतिमान उनियाल

Tuesday, January 28, 2014

ढब्बू जी का इंटरव्यू

ढब्बू जी पिछले पाँच सालों से नौकरी ढूंढ रहे थे. ऐसा नहीं कि उनको नौकरी के बुलावे नहीं आते पर ढब्बू जी को तो देश की सबसे बड़ी कंपनी का सीधे मैनेजिंग डायरेक्टर बनना था. वैसे उनकी माताजी उसी कंपनी के सिलेक्शन बोर्ड में ऊँचे पद पर थी पर मैनेजिंग डायरेक्टर बनाने के लिए सारे शेयर होल्डर्स का बहुमत चाहिए था. अब सारे शेयर होल्डर्स से व्यक्तिगत मिलना तो मुमकिन और मुनासिब नहीं था तो तय हुआ कि आगामी सोमवार को टेली कांफ्रेंस  और उसके वेबकास्ट से शेयर होल्डर्स से मुलाकात कि जाए.

दे दाना दान किताबें, इनसाइक्लोपीडिया, महापुरुषों की जीवनियां सब पढ़ना शुरू। लगना चाहिये ना कि ढब्बू जी बहुत पढ़े लिखे है. सबको विश्वास था कि बहुत ही आसान सवाल पूछें जायेंगे जैसे कंपनी के बारे में, उनकी माताजी के बारे में तथा उनके खानदान के इस कंपनी में योगदान या भविस्य में आप कंपनी को किस दिशा में ले जायेंगे आदि.

टेलीकांफ्रेंस के दिन ढब्बू जी धोती कुर्ता में आये, लगना चाहिए ना कि वह भी उन सामान्य शेयर होल्डर्स जैसे है. अब सवाल जवाब शुरू हुए:

सवाल: हमारे देश की राजधानी का नाम क्या है?
ढब्बू जी : हमारी कंपनी पिछले १०० सालों से देश कि सेवा कर रही है और आगे भी करते रहेंगे,

सवाल: वह तो ठीक है पर हमारे देश की राजधानी का नाम क्या है?
ढब्बू जी : हमारी कंपनी की ब्रांच हर राज्य में है.

सवाल: अच्छा समझ गए कि हमारे देश कि राजधानी दिल्ली है. अब यह बताएं कि २० साल पहले आपकी कंपनी ने २०० मजदूरों को निकाल दिया था जिसकी वजह से २ महीने तक कंपनी में तालाबंदी रही थी. क्या आप उन मजदूरों से उन पर हुए जुल्मों के लिए माफ़ी मांगेगे?
ढब्बू जी : देखिये उस घटना के वक्त में मौजूद नहीं था और इसमें मेरा कोई हाथ नहीं था तो मैं माफ़ी क्यों मांगूं। हाँ हमें भविष्य में अपनी कंपनी को नयी ऊंचाई पर ले जाना है. हम अगले साल से दो नए प्रोडक्ट भी मार्केट में ला रहे है. जनता को वह प्रोडक्ट बहुत अच्छे लगेंगे।

सवाल: एक बात बताएं कि आपकी प्रतिद्वंदी कंपनी ने दो साल पहले १०० मजदूरों को निकाल दिया था तब तो आप बहुत विरोध कर रहे थे?
ढब्बू जी : बिलकुल इसकेलिए उस कंपनी का प्रशासन जिम्मेदार था.

सवाल: और जो आपकी कंपनी ने किया?
ढब्बू जी : देखिये हमें विकास के तरफ देखना है. हम चाहते है कि हमारी कंपनी में युवा लोग जुड़ सकें।

सवाल: आप कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बनना चाहते है पर अगर शेयर होल्डर्स ने आपको नहीं चुना?
ढब्बू जी : जीत मेरी ही होगी।

सवाल: मान लीजिये आप हार जाते है?
ढब्बू जी : मुझे अपने युवा शेयर होल्डर्स पर पूरा विश्वास है. और हमने अपनी कंपनी में महिलायों कि सुरक्षा के लिए कितने नए काम किये है. हमने एक नया एच आर मेनेजर रखा है जहाँ पर वोह अपनी परेशानियाँ या कंपनी में चल रहे गलत काम को बता सकता है.

सवाल: आप कैसे मैनेजिंग डायरेक्टर साबित होंगें?
ढब्बू जी : मेरा पूरा परिवार इस कंपनी में पिछले कई दशकों से जुड़ा है. मैंने अपने परिवार के सब लोंगों को इस्तीफा देते हुए देखा है. मैं इस कंपनी को नयी दिशा दूंगा।

सवाल: ढब्बू जी आप ने टेलीकांफ्रेंस के जरिये अपने शेयर होल्डर्स से बात कि, अपनी जिम्मेदारियां बताई। हम सब आशा करते है कि आप ही इस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर चुने जाये।
धन्यवाद

प्रतिमान उनियाल 

Saturday, January 25, 2014

कबीले का आदमी

सब उसे कबीले का आदमी कहते थे. वैसे तो वह औरत थी पर वह कबीले की मुखिया थी इसलिए वह कबीले का आदमी था.  औरत, हाँ शरीर की बनावट व आवाज़ से औरत थी पर पहनावा, बातचीत का तरीका, हुकुम चलाना, तन कर चलना उसे मर्द बनाता था. गुस्सा तो जैसे नाक पर चढ़ा रहता था, क्या मजाल की कबीले का कोई भी सदस्य उसकी बात को टाल दें. सब उसके गुलाम थे, कर भी क्या सकते थे, कबीला छोड़ कर कहाँ जाते। कुछ एक उद्दंड सदस्यों ने दूसरे कबीलों की सदस्यता के लिए प्रार्थना पत्र भेजा था पर मुखिया की कुख्याति हर कबीले वालों को पता थी, इसलियें सिवाय सहानुभूति के कोई दूसरा जवाब नहीं आता. कुख्याति भी ऐसी की हर औरत को सुनाने में शर्म आयें और मर्द चटखारे  मार कर सुने। हर सरकारी मुलाज़िम, मजिस्ट्रेट, पुलिस या यूं कहें की हर ओहदे वाले से उसके गंदे सम्बन्ध थे. रात रात भर उनके घरों में पड़े रहना, भर दुपहरी में घोड़े में सवार होकर नए संपर्क की खोज में कबीले से बहार रह्ना। कबीले में आने वाले हर माल में उसका रकम थी. रकम नहीं तो काम नहीं।

कबीले का काम सुचारू रूप से होना तो दूर अब गुजारे लायक चलना भी दूभर हो रहा था. चूँकि सरकार का हाथ उसके सर पर था तो वह अपनी हरकतें जारी करने में स्वछंद थी. क्या करें, कैसे करें हर कोई सोचता, कभी किसी दिन किसी को जोश आ जाता की मार दो उसको, पर थोड़ी देर में जोश ठंडा, क्योंकि  अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

फिर एक दिन ऐसा आया कि सब का सब्र का बांध टूट गया. क्या बच्चा, क्या बूढा, सब ने जो मिला, लाठी, डंडा, उठा के पहुंचे मुखिया के पास. मुखिया का दिमाग ठनका, विद्रोह हो गया. मुखिया ने सरकार से विद्रोहियों की शिकायत की पर विद्रोहियों की संख्यां देखकर सरकार ने वोट बैंक बचाने की खातिर मुखिया को ही संयम से रहने की हिदायत देकर विद्रोह किसी तरह शांत कराया। सौ चूहें खाकर बिल्ली हज तो नहीं कर सकती, चुनांचे कुछ दिन संयम का परिचय देकर, धीरे धीरे पुराने ढर्रे में लौटने लगी. तरीका बदल दिया। किसी दिन एक सदस्य को खास कृपापात्र बनाकर दूसरों पर जुल्म करती तो दूसरे दिन उसी को अपना कृपा पत्र बनाकर पहले वाले पर जुल्म करती। तरकीब काम आ रही थी पर कबीले वालों में कुंठाएं बढ़ रही थी. फिर वही ढ़ाक के तीन पात.

एक दिन किसी का दिमाग चला, एक वीरान जगह में डरपोक सदस्यों को छोड़ कर सभी कबीले वालों की बैठक कराईं। तय हुआ कि सब सदस्य एक साथ कबीले की सदस्यता से त्यागपत्र दे तथा दूर के कबीले में चले जाएँ. युक्ति काम आयी, डरपोक सदस्यों को छोड़कर  सब ने इस्तीफ़ा देकर कबीला खाली कर दिया। अकेली मुखिया कुछ डरपोक के साथ क्या करती, कबीला ठप्प- कुछ दिन के लिए.
सरकार ने देखा कि कबीले के बगैर उनके वोट बैंक पर असर पड़ रहा है, फिर क्या था कबीले में नए सदस्यों की भर्ती हो गई.

मुखिया आज भी कबीले का आदमी है, वही जुल्म, वही गुलामी। उन निर्भीक लोगों का क्या हुआ जिन्होंने कबीला छोड़ दिया था? सुना है कि दूसरे कबीले का मुखिया भी इस कबीले के आदमी से उन्नीस नहीं है.

प्रतिमान उनियाल  

Friday, January 24, 2014

हाय राम फेसबुकियों का ज़माना

आज के समय में सब कुछ बिकाऊ है।  माल है तो ताल है वरना सब बेकार है. पैसा ख़त्म खेल हज़म. कपडे, खेल खिलोने, सिनेमा, कार, पढ़ाई, कमाई सब मिलेगा अगर एक अदद कंप्यूटर हो. अब तो स्मार्ट फोन्स से भी काम चल जाता है. और अगर फेसबुक, ट्विटर के शौक़ीन है तो कहना ही क्या। पूरी दुनिया के बादशाह हो भाई. कुछ पसंद है फेसबुक में डालों, लगेगा पूरी दुनिया को पसंद है. नापसंद है तो समझ लो किसी और को पसंद करने का अधिकार नहीं, वरना वह दुश्मन न १.

फेसबुक करने वाले सब के बारे में आदि अनादि जानते है. सबने अपने लोम विलोम, पक्ष विपक्ष, ग्रह पूर्वाग्रह पाल रखे है. कोई नमो नमो तो कोई रागा रागा। किसी का पप्पू, किसी का फेंकू, सब की अपनी पसंद है. और अगर कोई किसी दूसरे के पाले में चला गया तो फजीयत कि गरंटी। सब अपने विचार, नारे, ऐसे  लिखते है जैसे इनके वाला सभी कष्टों का पालनहार और दूसरा राक्षसों का अधिपति।

कुछ लोग तन मन धन और समय से सिर्फ अपने देवता की पूजा करने में लगे है चाहे वह सिर्फ दो महीने के प्रयोजन के लिए हो क्यों ना हो. वैसे ज्यादातर लेख या नारे प्रायोजित लगते है, पैसा दो नारे चेप दो. अब हम दो हमारे दो का नारा नहीं, बल्कि "मेरा पप्पू तेरे फेंकू से सफ़ेद क्यों" का ज़माना है.

खेलों में गेम फिक्स करने वालों को बुकी कहते है तो फेसबुक में व्यक्ति विशेष प्रायोजित लेख लिखने वालों को फेसबुकी कहना चाहिये। यह भी मैच फिक्स करने में लगे है. सिर्फ अपने बन्दे को जीताना है येन केन प्रकारेण। वोटर तेरा नेता दीवाना, हाय राम फेसबुकियों का ज़माना।

लाइक का बाजार है, कमेंट का बाज़ार है और इस बाज़ार में नेता लोग थोक के ग्राहक है और वोटर फुटकर खरीददार। वादो का खरीददार, एक सुनहरे सपने का खरीददार। और चुनाव के बाद हमें क्या मिलेगा ...... बाबाजी का ……
जागो आम आदमी जागो. अरे आम आदमी मतलब  दो जून की रोटी कमाने वाले ना कि पार्टी. समझे, क्या खाक समझे, मुझे भी समझ नहीं आया.

प्रतिमान उनियाल 

Thursday, January 23, 2014

कुत्तों वाली बात

एक वाक्या, एक सम्भ्रान्त किस्म का कुत्ता रोज परेशान रहता था कि आलीशान घर में रहने के अलावा उसका कुछ काम ना था. हर रोज वह खिड़की से देखता कि गली के लोग और सड़क के भिखारी उसके बिरादरी के कुत्तों को पत्थर मारते, कभी तो कोई गाडी वाला उनको कुचलता हुआ चला जाता। वह अपने कुत्ता समाज के कुछ करना चाहता था. 

एक दिन वह घर छोड़कर सड़क पर निकला। खुली हवा उसे अच्छी लग रही थी. हर आने जाना वाला कुत्ता, उस संभ्रांत कुत्ते को आश्चर्य से देखते, उसे लगा कि अगर वह इन सड़क के आम कुत्तों के अधिकारों के लिए लड़े तो वह पूरे कुत्ता समाज का नेतृत्व कर सकता है. उसने हर आम कुत्ते कि तकलीफों का ब्यौरा लेना शुरू किया। जब भी कोई कुत्तों को पत्थर मारता, लाठी मारता तो वह भोंकते हुए पहुँच जाता। हर गाडी वाले के पीछे भागता ताकि कोई भी आम कुत्ता कुचला ना जा सके. एक तरह से उसने आपने इलाके के कुत्तों में धाक जमा कर अधिपत्य जमा लिया था.

दूसरे बिरादरी के कुत्तों को उससे जलन होती थी. दिन रात भोंक भोंक कर उसके बारे में भोंकते कि वह कुत्ता तो बड़ी बिरादरी का है, आम कुत्तों कि उसे क्या फिक्र। एक रात वह कुत्ता रोज कि तरह सड़क पर आम कुत्तों के अधिकारों के लिए पहरा दे रहा था. दूसरे बिरादरी के कुत्तों ने उसको घेर लिए और लगे उस पर भोंकने और दांत गड़ाने. उनसे थोड़ी ही दूरी पर ही एक कार सवार ने एक कुत्ते को टक्कर मार दी. दूसरी बिरादरी के कुत्तों ने यह इल्जाम उस कुत्ते पर लगा दिया। हर घटना के पीछे उस कुत्ते को ही दोष देने लगे. वह रहने वालों को पता था कि यह कुत्ता उन के लिए ही काम कर रहा है पर फिर भी वह दूसरी बिरादरी के लोगों कि बहकाई में आ रहे थे. उसके अपने कुत्ते ही उससे मुंह मोड़ने लगे.

आज भी वह आम कुत्तों के लिए काम कर रहा है. कोई उसके काम को नहीं देखता। सब को लगता कि कोई कितने दिन अच्छे काम और दूसरों कि भलाई के काम कर सकता है. फिर भी वह लगा हुआ है.. इस विश्वास से शायद एक दिन आम कुत्तों के दिन अच्छे हो जाए. दुश्मन कुत्ते अब भी उसको बदनाम करने में लगे है पर उस पर एक धुन लगी है : हम होगे कामयाब एक दिन, मन में विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन...

प्रतिमान उनियाल

Wednesday, January 22, 2014

कमाल का माहौल है आज कल, जिसकी लाठी उसकी भैंस

कमाल का माहौल है आज कल. जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात है. सब कि सुईं अरविन्द केजरीवाल और आप मैं अटक गयी है. जिनको मौका मिला और जिनके पास अपनी आवाज बुलंद करने का माध्यम है, वह केजरीवाल को पानी पी पी कर कोस रहा है. कोसे भी क्यों नहीं, उनको पैसे ही कोसने के लिए दिए जा रहे है. एक फ़िल्म में डायलाग था हम ही हम है तो क्या हम है …तुम ही तुमहो तो क्या तुम हो. अब तो सबके लिए आप ही आप है. हम और तुम अब आप तक सीमित रह गए।
कोई कर रहा है तब भी सबको परेशानी, दूसरे पिछले ६५ सालों से कुछ नहीं कर रहे तो "हो रहा भारत निर्माण" या "इंडिया शाइनिंग". धन्य है भाई...
देश में ही नहीं हमारे आदरणीय अब विदेश में भी अरविन्द अरविन्द कि माला रट रहे है. एक आदरणीय देश में अरविन्द केजरीवाल को पागल घोषित कर रहे है तो दूसरे आदरणीय दावोस में जाकर व्यापार, वाणिज्य, नीतियों के बारे में ना बात कर के अरविन्द केजरीवाल का इस्तीफा मांग रहे है.
सबको याद है कि सोमनाथ भारती ने क्या किया, पर कोई याद नहीं करना चाहता कि सुनंदा पुष्कर के साथ क्या हुआ या नैना साहनी, शिवानी भटनागर, नितीश कटारा, प्रियदर्शी मट्टू में किसको क्या सजा मिली।
बद्री केदार को सब भूल गए, ठण्ड में मरने वालों या दंगों में मरने वालों को याद करने कि क्या जरूरत है. भाई अब तो अरविन्द नाम का विटामिन पूरे देश को गर्मी दे रहा है. जपो जपो अरविन्द जपो, कुछ मत करो, देश का भला होगा और चुनाव में तो पक्का मुनाफा। सही है हींग लगे ना फिटकरी, फिर भी चोखा रंग. सिर्फ अरविन्द केजरीवाल को कोसो, सरकार बना ही लेंगे। देश जाए भाड़ में

प्रतिमान उनियाल

Tuesday, January 21, 2014

नव वर्ष नव उमंग

नए दिन, नए वर्ष का आगाज़ इस तरह
मानो शिशु ने माँ के गोद में अभी खोली है आँखें 
चारों तरफ देख कोशिश कर रहा सबको अपनाने की
ऐसे, मानो ना कोई अपना ना ही पराया है 

इतिहास से बेखबर, भविष्य से अंजान
उत्साह ऐसा कि किलकारी में पूरा वर्त्तमान समेटे 
माँ कि गोद ही दुनिया, माँ का चेहरा ही संसार
हो रहा है नए जीवन, 
नए वर्ष का आगाज़