Thursday, October 9, 2014

हैदर फिल्म

हैदर फिल्म देखी। इसको डार्क (Dark) फिल्म कह सकते है. डार्क क्यों, क्योंकि इसमें कश्मीर की स्याह छवि है, इसमें रिश्तो की कुरूपता है, इसमें बदले की भयावहता है, इसमें जज्बातों की राख़ है.
कई साल पहले माचिस आई थी. वह भी एक डार्क फिल्म थी. उसमे पंजाब था पर आज पंजाब बिलकुल बदल गया है, अपना हो गया है.
हैदर देखने के बाद उम्मीद है की भारत के हम बाकी लोगों की सोच कुछ बदलेगी। कश्मीरी दोहरी मार झेल रहे है.... सीमा पार आतंकवाद और राजनीति। इस फिल्म ने एक चेहरा दिखाया जो की अपने आप नहीं बना बल्कि हालात ने बनाया।
माचिस के बाद पंजाब अपना हो गया अब हैदर के बाद कश्मीर और कश्मीरी अपने हो जायेंगे, ऐसी उम्मीद है शायद।
दोनों फिल्मो में समानता है - तब्बू, गुलज़ार, विशाल भरद्वाज, विभत्स्ता और एक अधूरा अंत.
हैदर के गाने - फैज़ अहमद फैज़ और गुलज़ार साहब - संगीत खुद विशाल भारद्वाज का- ऐसा लगा कि कश्मीर स्क्रीन फाड़े सामने खड़ा है.
हाँ यह कहना भी वाजिब है की हैदर फिल्म शेक्सपीयर के हैमलेट का रूपांतरण है. बिलकुल है पर कश्मीरी तरीके है, भारतीय तरीके से.
फिल्म का अंत दर्शकों के विवेक पर है - वाजिब, गैर वाजिब, अधूरा, अर्ध सत्य... आदि इत्यादि
- प्रतिमान उनियाल