Tuesday, January 28, 2014

ढब्बू जी का इंटरव्यू

ढब्बू जी पिछले पाँच सालों से नौकरी ढूंढ रहे थे. ऐसा नहीं कि उनको नौकरी के बुलावे नहीं आते पर ढब्बू जी को तो देश की सबसे बड़ी कंपनी का सीधे मैनेजिंग डायरेक्टर बनना था. वैसे उनकी माताजी उसी कंपनी के सिलेक्शन बोर्ड में ऊँचे पद पर थी पर मैनेजिंग डायरेक्टर बनाने के लिए सारे शेयर होल्डर्स का बहुमत चाहिए था. अब सारे शेयर होल्डर्स से व्यक्तिगत मिलना तो मुमकिन और मुनासिब नहीं था तो तय हुआ कि आगामी सोमवार को टेली कांफ्रेंस  और उसके वेबकास्ट से शेयर होल्डर्स से मुलाकात कि जाए.

दे दाना दान किताबें, इनसाइक्लोपीडिया, महापुरुषों की जीवनियां सब पढ़ना शुरू। लगना चाहिये ना कि ढब्बू जी बहुत पढ़े लिखे है. सबको विश्वास था कि बहुत ही आसान सवाल पूछें जायेंगे जैसे कंपनी के बारे में, उनकी माताजी के बारे में तथा उनके खानदान के इस कंपनी में योगदान या भविस्य में आप कंपनी को किस दिशा में ले जायेंगे आदि.

टेलीकांफ्रेंस के दिन ढब्बू जी धोती कुर्ता में आये, लगना चाहिए ना कि वह भी उन सामान्य शेयर होल्डर्स जैसे है. अब सवाल जवाब शुरू हुए:

सवाल: हमारे देश की राजधानी का नाम क्या है?
ढब्बू जी : हमारी कंपनी पिछले १०० सालों से देश कि सेवा कर रही है और आगे भी करते रहेंगे,

सवाल: वह तो ठीक है पर हमारे देश की राजधानी का नाम क्या है?
ढब्बू जी : हमारी कंपनी की ब्रांच हर राज्य में है.

सवाल: अच्छा समझ गए कि हमारे देश कि राजधानी दिल्ली है. अब यह बताएं कि २० साल पहले आपकी कंपनी ने २०० मजदूरों को निकाल दिया था जिसकी वजह से २ महीने तक कंपनी में तालाबंदी रही थी. क्या आप उन मजदूरों से उन पर हुए जुल्मों के लिए माफ़ी मांगेगे?
ढब्बू जी : देखिये उस घटना के वक्त में मौजूद नहीं था और इसमें मेरा कोई हाथ नहीं था तो मैं माफ़ी क्यों मांगूं। हाँ हमें भविष्य में अपनी कंपनी को नयी ऊंचाई पर ले जाना है. हम अगले साल से दो नए प्रोडक्ट भी मार्केट में ला रहे है. जनता को वह प्रोडक्ट बहुत अच्छे लगेंगे।

सवाल: एक बात बताएं कि आपकी प्रतिद्वंदी कंपनी ने दो साल पहले १०० मजदूरों को निकाल दिया था तब तो आप बहुत विरोध कर रहे थे?
ढब्बू जी : बिलकुल इसकेलिए उस कंपनी का प्रशासन जिम्मेदार था.

सवाल: और जो आपकी कंपनी ने किया?
ढब्बू जी : देखिये हमें विकास के तरफ देखना है. हम चाहते है कि हमारी कंपनी में युवा लोग जुड़ सकें।

सवाल: आप कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बनना चाहते है पर अगर शेयर होल्डर्स ने आपको नहीं चुना?
ढब्बू जी : जीत मेरी ही होगी।

सवाल: मान लीजिये आप हार जाते है?
ढब्बू जी : मुझे अपने युवा शेयर होल्डर्स पर पूरा विश्वास है. और हमने अपनी कंपनी में महिलायों कि सुरक्षा के लिए कितने नए काम किये है. हमने एक नया एच आर मेनेजर रखा है जहाँ पर वोह अपनी परेशानियाँ या कंपनी में चल रहे गलत काम को बता सकता है.

सवाल: आप कैसे मैनेजिंग डायरेक्टर साबित होंगें?
ढब्बू जी : मेरा पूरा परिवार इस कंपनी में पिछले कई दशकों से जुड़ा है. मैंने अपने परिवार के सब लोंगों को इस्तीफा देते हुए देखा है. मैं इस कंपनी को नयी दिशा दूंगा।

सवाल: ढब्बू जी आप ने टेलीकांफ्रेंस के जरिये अपने शेयर होल्डर्स से बात कि, अपनी जिम्मेदारियां बताई। हम सब आशा करते है कि आप ही इस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर चुने जाये।
धन्यवाद

प्रतिमान उनियाल 

Saturday, January 25, 2014

कबीले का आदमी

सब उसे कबीले का आदमी कहते थे. वैसे तो वह औरत थी पर वह कबीले की मुखिया थी इसलिए वह कबीले का आदमी था.  औरत, हाँ शरीर की बनावट व आवाज़ से औरत थी पर पहनावा, बातचीत का तरीका, हुकुम चलाना, तन कर चलना उसे मर्द बनाता था. गुस्सा तो जैसे नाक पर चढ़ा रहता था, क्या मजाल की कबीले का कोई भी सदस्य उसकी बात को टाल दें. सब उसके गुलाम थे, कर भी क्या सकते थे, कबीला छोड़ कर कहाँ जाते। कुछ एक उद्दंड सदस्यों ने दूसरे कबीलों की सदस्यता के लिए प्रार्थना पत्र भेजा था पर मुखिया की कुख्याति हर कबीले वालों को पता थी, इसलियें सिवाय सहानुभूति के कोई दूसरा जवाब नहीं आता. कुख्याति भी ऐसी की हर औरत को सुनाने में शर्म आयें और मर्द चटखारे  मार कर सुने। हर सरकारी मुलाज़िम, मजिस्ट्रेट, पुलिस या यूं कहें की हर ओहदे वाले से उसके गंदे सम्बन्ध थे. रात रात भर उनके घरों में पड़े रहना, भर दुपहरी में घोड़े में सवार होकर नए संपर्क की खोज में कबीले से बहार रह्ना। कबीले में आने वाले हर माल में उसका रकम थी. रकम नहीं तो काम नहीं।

कबीले का काम सुचारू रूप से होना तो दूर अब गुजारे लायक चलना भी दूभर हो रहा था. चूँकि सरकार का हाथ उसके सर पर था तो वह अपनी हरकतें जारी करने में स्वछंद थी. क्या करें, कैसे करें हर कोई सोचता, कभी किसी दिन किसी को जोश आ जाता की मार दो उसको, पर थोड़ी देर में जोश ठंडा, क्योंकि  अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

फिर एक दिन ऐसा आया कि सब का सब्र का बांध टूट गया. क्या बच्चा, क्या बूढा, सब ने जो मिला, लाठी, डंडा, उठा के पहुंचे मुखिया के पास. मुखिया का दिमाग ठनका, विद्रोह हो गया. मुखिया ने सरकार से विद्रोहियों की शिकायत की पर विद्रोहियों की संख्यां देखकर सरकार ने वोट बैंक बचाने की खातिर मुखिया को ही संयम से रहने की हिदायत देकर विद्रोह किसी तरह शांत कराया। सौ चूहें खाकर बिल्ली हज तो नहीं कर सकती, चुनांचे कुछ दिन संयम का परिचय देकर, धीरे धीरे पुराने ढर्रे में लौटने लगी. तरीका बदल दिया। किसी दिन एक सदस्य को खास कृपापात्र बनाकर दूसरों पर जुल्म करती तो दूसरे दिन उसी को अपना कृपा पत्र बनाकर पहले वाले पर जुल्म करती। तरकीब काम आ रही थी पर कबीले वालों में कुंठाएं बढ़ रही थी. फिर वही ढ़ाक के तीन पात.

एक दिन किसी का दिमाग चला, एक वीरान जगह में डरपोक सदस्यों को छोड़ कर सभी कबीले वालों की बैठक कराईं। तय हुआ कि सब सदस्य एक साथ कबीले की सदस्यता से त्यागपत्र दे तथा दूर के कबीले में चले जाएँ. युक्ति काम आयी, डरपोक सदस्यों को छोड़कर  सब ने इस्तीफ़ा देकर कबीला खाली कर दिया। अकेली मुखिया कुछ डरपोक के साथ क्या करती, कबीला ठप्प- कुछ दिन के लिए.
सरकार ने देखा कि कबीले के बगैर उनके वोट बैंक पर असर पड़ रहा है, फिर क्या था कबीले में नए सदस्यों की भर्ती हो गई.

मुखिया आज भी कबीले का आदमी है, वही जुल्म, वही गुलामी। उन निर्भीक लोगों का क्या हुआ जिन्होंने कबीला छोड़ दिया था? सुना है कि दूसरे कबीले का मुखिया भी इस कबीले के आदमी से उन्नीस नहीं है.

प्रतिमान उनियाल  

Friday, January 24, 2014

हाय राम फेसबुकियों का ज़माना

आज के समय में सब कुछ बिकाऊ है।  माल है तो ताल है वरना सब बेकार है. पैसा ख़त्म खेल हज़म. कपडे, खेल खिलोने, सिनेमा, कार, पढ़ाई, कमाई सब मिलेगा अगर एक अदद कंप्यूटर हो. अब तो स्मार्ट फोन्स से भी काम चल जाता है. और अगर फेसबुक, ट्विटर के शौक़ीन है तो कहना ही क्या। पूरी दुनिया के बादशाह हो भाई. कुछ पसंद है फेसबुक में डालों, लगेगा पूरी दुनिया को पसंद है. नापसंद है तो समझ लो किसी और को पसंद करने का अधिकार नहीं, वरना वह दुश्मन न १.

फेसबुक करने वाले सब के बारे में आदि अनादि जानते है. सबने अपने लोम विलोम, पक्ष विपक्ष, ग्रह पूर्वाग्रह पाल रखे है. कोई नमो नमो तो कोई रागा रागा। किसी का पप्पू, किसी का फेंकू, सब की अपनी पसंद है. और अगर कोई किसी दूसरे के पाले में चला गया तो फजीयत कि गरंटी। सब अपने विचार, नारे, ऐसे  लिखते है जैसे इनके वाला सभी कष्टों का पालनहार और दूसरा राक्षसों का अधिपति।

कुछ लोग तन मन धन और समय से सिर्फ अपने देवता की पूजा करने में लगे है चाहे वह सिर्फ दो महीने के प्रयोजन के लिए हो क्यों ना हो. वैसे ज्यादातर लेख या नारे प्रायोजित लगते है, पैसा दो नारे चेप दो. अब हम दो हमारे दो का नारा नहीं, बल्कि "मेरा पप्पू तेरे फेंकू से सफ़ेद क्यों" का ज़माना है.

खेलों में गेम फिक्स करने वालों को बुकी कहते है तो फेसबुक में व्यक्ति विशेष प्रायोजित लेख लिखने वालों को फेसबुकी कहना चाहिये। यह भी मैच फिक्स करने में लगे है. सिर्फ अपने बन्दे को जीताना है येन केन प्रकारेण। वोटर तेरा नेता दीवाना, हाय राम फेसबुकियों का ज़माना।

लाइक का बाजार है, कमेंट का बाज़ार है और इस बाज़ार में नेता लोग थोक के ग्राहक है और वोटर फुटकर खरीददार। वादो का खरीददार, एक सुनहरे सपने का खरीददार। और चुनाव के बाद हमें क्या मिलेगा ...... बाबाजी का ……
जागो आम आदमी जागो. अरे आम आदमी मतलब  दो जून की रोटी कमाने वाले ना कि पार्टी. समझे, क्या खाक समझे, मुझे भी समझ नहीं आया.

प्रतिमान उनियाल 

Thursday, January 23, 2014

कुत्तों वाली बात

एक वाक्या, एक सम्भ्रान्त किस्म का कुत्ता रोज परेशान रहता था कि आलीशान घर में रहने के अलावा उसका कुछ काम ना था. हर रोज वह खिड़की से देखता कि गली के लोग और सड़क के भिखारी उसके बिरादरी के कुत्तों को पत्थर मारते, कभी तो कोई गाडी वाला उनको कुचलता हुआ चला जाता। वह अपने कुत्ता समाज के कुछ करना चाहता था. 

एक दिन वह घर छोड़कर सड़क पर निकला। खुली हवा उसे अच्छी लग रही थी. हर आने जाना वाला कुत्ता, उस संभ्रांत कुत्ते को आश्चर्य से देखते, उसे लगा कि अगर वह इन सड़क के आम कुत्तों के अधिकारों के लिए लड़े तो वह पूरे कुत्ता समाज का नेतृत्व कर सकता है. उसने हर आम कुत्ते कि तकलीफों का ब्यौरा लेना शुरू किया। जब भी कोई कुत्तों को पत्थर मारता, लाठी मारता तो वह भोंकते हुए पहुँच जाता। हर गाडी वाले के पीछे भागता ताकि कोई भी आम कुत्ता कुचला ना जा सके. एक तरह से उसने आपने इलाके के कुत्तों में धाक जमा कर अधिपत्य जमा लिया था.

दूसरे बिरादरी के कुत्तों को उससे जलन होती थी. दिन रात भोंक भोंक कर उसके बारे में भोंकते कि वह कुत्ता तो बड़ी बिरादरी का है, आम कुत्तों कि उसे क्या फिक्र। एक रात वह कुत्ता रोज कि तरह सड़क पर आम कुत्तों के अधिकारों के लिए पहरा दे रहा था. दूसरे बिरादरी के कुत्तों ने उसको घेर लिए और लगे उस पर भोंकने और दांत गड़ाने. उनसे थोड़ी ही दूरी पर ही एक कार सवार ने एक कुत्ते को टक्कर मार दी. दूसरी बिरादरी के कुत्तों ने यह इल्जाम उस कुत्ते पर लगा दिया। हर घटना के पीछे उस कुत्ते को ही दोष देने लगे. वह रहने वालों को पता था कि यह कुत्ता उन के लिए ही काम कर रहा है पर फिर भी वह दूसरी बिरादरी के लोगों कि बहकाई में आ रहे थे. उसके अपने कुत्ते ही उससे मुंह मोड़ने लगे.

आज भी वह आम कुत्तों के लिए काम कर रहा है. कोई उसके काम को नहीं देखता। सब को लगता कि कोई कितने दिन अच्छे काम और दूसरों कि भलाई के काम कर सकता है. फिर भी वह लगा हुआ है.. इस विश्वास से शायद एक दिन आम कुत्तों के दिन अच्छे हो जाए. दुश्मन कुत्ते अब भी उसको बदनाम करने में लगे है पर उस पर एक धुन लगी है : हम होगे कामयाब एक दिन, मन में विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन...

प्रतिमान उनियाल

Wednesday, January 22, 2014

कमाल का माहौल है आज कल, जिसकी लाठी उसकी भैंस

कमाल का माहौल है आज कल. जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात है. सब कि सुईं अरविन्द केजरीवाल और आप मैं अटक गयी है. जिनको मौका मिला और जिनके पास अपनी आवाज बुलंद करने का माध्यम है, वह केजरीवाल को पानी पी पी कर कोस रहा है. कोसे भी क्यों नहीं, उनको पैसे ही कोसने के लिए दिए जा रहे है. एक फ़िल्म में डायलाग था हम ही हम है तो क्या हम है …तुम ही तुमहो तो क्या तुम हो. अब तो सबके लिए आप ही आप है. हम और तुम अब आप तक सीमित रह गए।
कोई कर रहा है तब भी सबको परेशानी, दूसरे पिछले ६५ सालों से कुछ नहीं कर रहे तो "हो रहा भारत निर्माण" या "इंडिया शाइनिंग". धन्य है भाई...
देश में ही नहीं हमारे आदरणीय अब विदेश में भी अरविन्द अरविन्द कि माला रट रहे है. एक आदरणीय देश में अरविन्द केजरीवाल को पागल घोषित कर रहे है तो दूसरे आदरणीय दावोस में जाकर व्यापार, वाणिज्य, नीतियों के बारे में ना बात कर के अरविन्द केजरीवाल का इस्तीफा मांग रहे है.
सबको याद है कि सोमनाथ भारती ने क्या किया, पर कोई याद नहीं करना चाहता कि सुनंदा पुष्कर के साथ क्या हुआ या नैना साहनी, शिवानी भटनागर, नितीश कटारा, प्रियदर्शी मट्टू में किसको क्या सजा मिली।
बद्री केदार को सब भूल गए, ठण्ड में मरने वालों या दंगों में मरने वालों को याद करने कि क्या जरूरत है. भाई अब तो अरविन्द नाम का विटामिन पूरे देश को गर्मी दे रहा है. जपो जपो अरविन्द जपो, कुछ मत करो, देश का भला होगा और चुनाव में तो पक्का मुनाफा। सही है हींग लगे ना फिटकरी, फिर भी चोखा रंग. सिर्फ अरविन्द केजरीवाल को कोसो, सरकार बना ही लेंगे। देश जाए भाड़ में

प्रतिमान उनियाल

Tuesday, January 21, 2014

नव वर्ष नव उमंग

नए दिन, नए वर्ष का आगाज़ इस तरह
मानो शिशु ने माँ के गोद में अभी खोली है आँखें 
चारों तरफ देख कोशिश कर रहा सबको अपनाने की
ऐसे, मानो ना कोई अपना ना ही पराया है 

इतिहास से बेखबर, भविष्य से अंजान
उत्साह ऐसा कि किलकारी में पूरा वर्त्तमान समेटे 
माँ कि गोद ही दुनिया, माँ का चेहरा ही संसार
हो रहा है नए जीवन, 
नए वर्ष का आगाज़