Tuesday, February 9, 2016

कविता: तेरा नाम

तेरा नाम

आज फिर नाम दिखा तेरा, मेरे आईने में
अक्स में ही कहीं छिपा था जो बाहर निकल आया
मुददतें हो गई उन अक्षरों को पढे
पन्नें भी धूल से सन गए
कुछ गर्द आंखों में भी गिर गई है

सिर्फ नाम तेरा पढने की आरजू से
फिर खोल बैठे है पुरानी हिसाब की किताबें
क्या पता कुछ ले दे कर
तेरा नाम फिर अपने से जोड लूं

कितने बरस यूं ही बीत गए
सब वैसे ही सहेज कर रखा है
क्या पता तुम फिर से अपने नाम वाले गानों का कैसेट मांग बैठो
हो सकता है तुम अपने नाम वाली वो किताब भी मांगों
जो मैने तुमसे दो दिन में लौटाने का वादा किया था।

दे ही दूंगा तुम्हें वो सब कुछ
जिसमें तुम्हारा नाम अंकित है
पर तुम्हारा नाम उन सब चीजों से फाड कर
फिर चिपकाउंगा उसे अपने अक्स पर
आखिर आईने के सामने 
तुम्हारा नाम देखेने को जो मिलेगा

- प्रतिमान उनियाल

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