Friday, January 24, 2014

हाय राम फेसबुकियों का ज़माना

आज के समय में सब कुछ बिकाऊ है।  माल है तो ताल है वरना सब बेकार है. पैसा ख़त्म खेल हज़म. कपडे, खेल खिलोने, सिनेमा, कार, पढ़ाई, कमाई सब मिलेगा अगर एक अदद कंप्यूटर हो. अब तो स्मार्ट फोन्स से भी काम चल जाता है. और अगर फेसबुक, ट्विटर के शौक़ीन है तो कहना ही क्या। पूरी दुनिया के बादशाह हो भाई. कुछ पसंद है फेसबुक में डालों, लगेगा पूरी दुनिया को पसंद है. नापसंद है तो समझ लो किसी और को पसंद करने का अधिकार नहीं, वरना वह दुश्मन न १.

फेसबुक करने वाले सब के बारे में आदि अनादि जानते है. सबने अपने लोम विलोम, पक्ष विपक्ष, ग्रह पूर्वाग्रह पाल रखे है. कोई नमो नमो तो कोई रागा रागा। किसी का पप्पू, किसी का फेंकू, सब की अपनी पसंद है. और अगर कोई किसी दूसरे के पाले में चला गया तो फजीयत कि गरंटी। सब अपने विचार, नारे, ऐसे  लिखते है जैसे इनके वाला सभी कष्टों का पालनहार और दूसरा राक्षसों का अधिपति।

कुछ लोग तन मन धन और समय से सिर्फ अपने देवता की पूजा करने में लगे है चाहे वह सिर्फ दो महीने के प्रयोजन के लिए हो क्यों ना हो. वैसे ज्यादातर लेख या नारे प्रायोजित लगते है, पैसा दो नारे चेप दो. अब हम दो हमारे दो का नारा नहीं, बल्कि "मेरा पप्पू तेरे फेंकू से सफ़ेद क्यों" का ज़माना है.

खेलों में गेम फिक्स करने वालों को बुकी कहते है तो फेसबुक में व्यक्ति विशेष प्रायोजित लेख लिखने वालों को फेसबुकी कहना चाहिये। यह भी मैच फिक्स करने में लगे है. सिर्फ अपने बन्दे को जीताना है येन केन प्रकारेण। वोटर तेरा नेता दीवाना, हाय राम फेसबुकियों का ज़माना।

लाइक का बाजार है, कमेंट का बाज़ार है और इस बाज़ार में नेता लोग थोक के ग्राहक है और वोटर फुटकर खरीददार। वादो का खरीददार, एक सुनहरे सपने का खरीददार। और चुनाव के बाद हमें क्या मिलेगा ...... बाबाजी का ……
जागो आम आदमी जागो. अरे आम आदमी मतलब  दो जून की रोटी कमाने वाले ना कि पार्टी. समझे, क्या खाक समझे, मुझे भी समझ नहीं आया.

प्रतिमान उनियाल 

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