Tuesday, March 1, 2016

कविता: हम सब मानो यंत्र है

कविता: हम सब मानो यंत्र है

हम सब मानो यंत्र है,
इस महानगरीय जीवन में, हम सब मानो यंत्र है
न कोई तंत्र, न कोई मंत्र, फिर भी हम सब मानो यंत्र है

जिसने जो कहा वह किया,
मना किसी को न किया,
जी का कभी अपना न किया,
बस काम अपना पूरा करते है,
जैसे हम सब मानो यंत्र है

सुबह से लेकर शाम तक, अब न होती थकान
रात से लेकर सुबह तक, अब न सो पाता
जीवन का सारा ढर्रा ही एसा हुआ,
हम सब मानो यंत्र है

रिश्तेदार न हमको पहचाने, दोस्त न हमको जाने
मतलब पडने पर ही पहचाने, नहीं तो रहे बिल्कुल अंजाने
न कोई रिश्ता, न कोई यारी, न कोई पडोसी, न दुनियादारी
हम भूल गये इन सबको, अब तो हुआ व्यवहार भी यांत्रिक
ऐसे जैसे हम सब मानो यंत्र है, हम सब मानो यंत्र है

दुनिया छोटी हुई जरूर, पर दिल की दूरी बढी भरपूर
पहले इस बडी दुनिया में, हम भी थे बहुत बडे
सबको अपना, पराया किसी को न माने थ
अब इस छोटी सी दुनिया में, हम हुए बहुत छोटे
सबको अपना दुश्मन माने, अच्छा किसी को न माने
हमारा व्यवहार ऐसे, जैसे हम सब हम सब मानो यंत्र है
हम सब हम सब मानो यंत्र है

छोटी छोटी बात में अब चाकू तमंचा निकलते
न कोई माने बात तो फट उसको मारते
न कोई दर्द, न शिकन, न मानवता का अहसास
जब कोई मरता, तो सोचते चलो बला टली और फिर करते अट्ठास
इस भयंकर वर्तमान में हम सब मानो यंत्र है
मानों ही क्यों हम सब मानो यंत्र है,
हम सब मानो यंत्र है

हम बदल रहे है यंत्र में,
अब तो सिर्फ शरीर ही मांस का बचा
दिलो दिमाग तो न जाने कब बन गये धातु के
लोग कहते कि दुनिया खतरे में,
पर मानवता ही असल खतरे में

कोई नहीं बदल सकता, इस यांत्रिक दुनिया को
सर्वनाश होना निश्चित है,
उस महानाश के बाद फिर एक नई दुनिया आयेगी,
फिर नया मानव उदय होगा,
पर तब तक तो हम यंत्र है, मानो क्यों, हम सचमुच यंत्र है
हम सब मानो यंत्र है हम सब मानो यंत्र है

_X_
- प्रतिमान उनियाल 




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