सब उसे कबीले का आदमी कहते थे. वैसे तो वह औरत थी पर वह कबीले की मुखिया थी इसलिए वह कबीले का आदमी था. औरत, हाँ शरीर की बनावट व आवाज़ से औरत थी पर पहनावा, बातचीत का तरीका, हुकुम चलाना, तन कर चलना उसे मर्द बनाता था. गुस्सा तो जैसे नाक पर चढ़ा रहता था, क्या मजाल की कबीले का कोई भी सदस्य उसकी बात को टाल दें. सब उसके गुलाम थे, कर भी क्या सकते थे, कबीला छोड़ कर कहाँ जाते। कुछ एक उद्दंड सदस्यों ने दूसरे कबीलों की सदस्यता के लिए प्रार्थना पत्र भेजा था पर मुखिया की कुख्याति हर कबीले वालों को पता थी, इसलियें सिवाय सहानुभूति के कोई दूसरा जवाब नहीं आता. कुख्याति भी ऐसी की हर औरत को सुनाने में शर्म आयें और मर्द चटखारे मार कर सुने। हर सरकारी मुलाज़िम, मजिस्ट्रेट, पुलिस या यूं कहें की हर ओहदे वाले से उसके गंदे सम्बन्ध थे. रात रात भर उनके घरों में पड़े रहना, भर दुपहरी में घोड़े में सवार होकर नए संपर्क की खोज में कबीले से बहार रह्ना। कबीले में आने वाले हर माल में उसका रकम थी. रकम नहीं तो काम नहीं।
कबीले का काम सुचारू रूप से होना तो दूर अब गुजारे लायक चलना भी दूभर हो रहा था. चूँकि सरकार का हाथ उसके सर पर था तो वह अपनी हरकतें जारी करने में स्वछंद थी. क्या करें, कैसे करें हर कोई सोचता, कभी किसी दिन किसी को जोश आ जाता की मार दो उसको, पर थोड़ी देर में जोश ठंडा, क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
फिर एक दिन ऐसा आया कि सब का सब्र का बांध टूट गया. क्या बच्चा, क्या बूढा, सब ने जो मिला, लाठी, डंडा, उठा के पहुंचे मुखिया के पास. मुखिया का दिमाग ठनका, विद्रोह हो गया. मुखिया ने सरकार से विद्रोहियों की शिकायत की पर विद्रोहियों की संख्यां देखकर सरकार ने वोट बैंक बचाने की खातिर मुखिया को ही संयम से रहने की हिदायत देकर विद्रोह किसी तरह शांत कराया। सौ चूहें खाकर बिल्ली हज तो नहीं कर सकती, चुनांचे कुछ दिन संयम का परिचय देकर, धीरे धीरे पुराने ढर्रे में लौटने लगी. तरीका बदल दिया। किसी दिन एक सदस्य को खास कृपापात्र बनाकर दूसरों पर जुल्म करती तो दूसरे दिन उसी को अपना कृपा पत्र बनाकर पहले वाले पर जुल्म करती। तरकीब काम आ रही थी पर कबीले वालों में कुंठाएं बढ़ रही थी. फिर वही ढ़ाक के तीन पात.
एक दिन किसी का दिमाग चला, एक वीरान जगह में डरपोक सदस्यों को छोड़ कर सभी कबीले वालों की बैठक कराईं। तय हुआ कि सब सदस्य एक साथ कबीले की सदस्यता से त्यागपत्र दे तथा दूर के कबीले में चले जाएँ. युक्ति काम आयी, डरपोक सदस्यों को छोड़कर सब ने इस्तीफ़ा देकर कबीला खाली कर दिया। अकेली मुखिया कुछ डरपोक के साथ क्या करती, कबीला ठप्प- कुछ दिन के लिए.
सरकार ने देखा कि कबीले के बगैर उनके वोट बैंक पर असर पड़ रहा है, फिर क्या था कबीले में नए सदस्यों की भर्ती हो गई.
मुखिया आज भी कबीले का आदमी है, वही जुल्म, वही गुलामी। उन निर्भीक लोगों का क्या हुआ जिन्होंने कबीला छोड़ दिया था? सुना है कि दूसरे कबीले का मुखिया भी इस कबीले के आदमी से उन्नीस नहीं है.
प्रतिमान उनियाल
कबीले का काम सुचारू रूप से होना तो दूर अब गुजारे लायक चलना भी दूभर हो रहा था. चूँकि सरकार का हाथ उसके सर पर था तो वह अपनी हरकतें जारी करने में स्वछंद थी. क्या करें, कैसे करें हर कोई सोचता, कभी किसी दिन किसी को जोश आ जाता की मार दो उसको, पर थोड़ी देर में जोश ठंडा, क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
फिर एक दिन ऐसा आया कि सब का सब्र का बांध टूट गया. क्या बच्चा, क्या बूढा, सब ने जो मिला, लाठी, डंडा, उठा के पहुंचे मुखिया के पास. मुखिया का दिमाग ठनका, विद्रोह हो गया. मुखिया ने सरकार से विद्रोहियों की शिकायत की पर विद्रोहियों की संख्यां देखकर सरकार ने वोट बैंक बचाने की खातिर मुखिया को ही संयम से रहने की हिदायत देकर विद्रोह किसी तरह शांत कराया। सौ चूहें खाकर बिल्ली हज तो नहीं कर सकती, चुनांचे कुछ दिन संयम का परिचय देकर, धीरे धीरे पुराने ढर्रे में लौटने लगी. तरीका बदल दिया। किसी दिन एक सदस्य को खास कृपापात्र बनाकर दूसरों पर जुल्म करती तो दूसरे दिन उसी को अपना कृपा पत्र बनाकर पहले वाले पर जुल्म करती। तरकीब काम आ रही थी पर कबीले वालों में कुंठाएं बढ़ रही थी. फिर वही ढ़ाक के तीन पात.
एक दिन किसी का दिमाग चला, एक वीरान जगह में डरपोक सदस्यों को छोड़ कर सभी कबीले वालों की बैठक कराईं। तय हुआ कि सब सदस्य एक साथ कबीले की सदस्यता से त्यागपत्र दे तथा दूर के कबीले में चले जाएँ. युक्ति काम आयी, डरपोक सदस्यों को छोड़कर सब ने इस्तीफ़ा देकर कबीला खाली कर दिया। अकेली मुखिया कुछ डरपोक के साथ क्या करती, कबीला ठप्प- कुछ दिन के लिए.
सरकार ने देखा कि कबीले के बगैर उनके वोट बैंक पर असर पड़ रहा है, फिर क्या था कबीले में नए सदस्यों की भर्ती हो गई.
मुखिया आज भी कबीले का आदमी है, वही जुल्म, वही गुलामी। उन निर्भीक लोगों का क्या हुआ जिन्होंने कबीला छोड़ दिया था? सुना है कि दूसरे कबीले का मुखिया भी इस कबीले के आदमी से उन्नीस नहीं है.
प्रतिमान उनियाल
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