ऑफिस में मैं काम में तल्लीन था। दिन शायद कुछ ऐसा ही था कि सुबह से एक पल के लिए भी चैन से सांस ली हो। सुबह बॉस ने मीटिंग के लिए बुलाया, फिर एड एजेंसी से एडर्वटोरियल फाइनल करवाना था। पिछले हफ्ते हुई कॉन्फ्रेंस में आए मीडिया के लोगों को धन्यवाद मेल भेजना था। मोबाईल की तरफ तो देख भी नहीं पा रहा था। साईलेंट मोड पर था पर हर थोडी थोडी देर में वाईब्रेशन से पता चलता रहता कि कॉल आ रही है या मैसेज। काफी देर से मोबाईल वईब्रेट हो रहा था। चुप ही नहीं हो रहा था। झुंझला के देखा 15 मिस कॉल, 10 तो विशू की थी। विशू मेरा कजिन भले ही था पर भाई से बढ़कर, परिवार का एक अहम हिस्सा।
हां विशू, क्या हाल, सब बढ़िया। भाई जी नमस्ते सब बढ़िया। आपने फेसबुक खोलकर देखा, मैनें कुछ पोस्ट किया है। मैनें थोड़े जल्दी में कहा, अब क्या कर दिया पोस्ट। अरे भाई आज वैलेंटाईन डे है ना, तो कर दिया पोस्ट। फटाफट फेसबुक खोलकर देखा कि विशू ने अपने और चारू की वैलेंटाईन कसमें खाते हुए फोटो लगाया हुआ था। विशू, मेरे भाई ऐसा क्यों करता है। किसको दिखाना चाहता है, क्या दिखाना चाहता है। अरे भाईजी मन हुआ डाल दिया आखिर उनके शुभचिंतकों को भी तो पता चले कि हम कौन है। मैं धम्म से अपनी सीट पर धंस गया। चल विशू, रात को आराम से बात करते है तब तक तू भी अपने रेस्त्रां से निपट लियो।
और मैं सोचता चल गया कि क्या आदमी है विशू। अपनी बीवी चारू के साथ वैलेंटाईन की कसमें खाते हुए फोटो फेसबुक में। वो भी तब जब चारू अब उसके साथ नहीं रहती और दोनो के बीच तलाक का केस चल रहा है। कल आखिरी सुनवाई, फिर जज साहब अपना फैसला सुना देगें और दोनो अलग। दोनो? नहीं नहीं तीनों। विशू, चारू और उनका प्यारा सा छह साल का बेटा अनु। इंटरकॉम की घंटी से मेरी तंद्रा टूटती है। साब आपकी कैब आ गई है। हां ठीक आ रहा हूं मैं। घर पहुंचने में एक घंटा लगता है। कैब में बैठे मोबाईल में मेल चेक कर रहा हूं पर दिमाग में विशू और चारू चल रहे
है।
तब विशू हमारे साथ ही रहता था। तब मतलब आज से 12 साल पहले। ग्रेज्यूएशन पूरा करके हॉटल मेनेजमेंट का कोर्स भी कर लिया था। तुरंत ही होटल ताज के एयर विंग में उसको शैफ की इंटरंशिप भी मिल गई थी। रात को दोनों भाई छत पर जाकर दिन भर की आपबीति सुनाते। अब लड़कों में कैसी बाते होगी। भाई क्या बंदी मिली
आज बस में, गजब, या फिर भाई शादी में क्या लग रही थी वो। वगैरह वगैरह ।
उस रात उसने कहा भाई सुमित की
शादी में एक बंदी मिली, बहुत सुंदर। मैनें चिढ़कर कहा फिर वही बकवास। भाई पूरी बात तो
सुनो उसकी एक सहेली मेरी दूर की एक बहन निकली, उसी ने मेरा उससे इंट्रो कराया। पूरी
शादी में हम बात करते रहे। चारू नाम है उसका। हमारे ही पहाड़ की है। मैंने पलट कर कहा
विशू बचपना छोड अब किसी अच्छे हॉटल में जॉब के लिए एप्लाई कर दे। तभी हॉर्न की आवाज
से मैं चौंका। अरे भाई यहां से लेफ्ट मोड़ना फिर रेड लाईट से राईट। अरे घर तो पहुंच
ही गया मैं।
बीवी ने दरवाजा खोला। सीधे अपने
कमरे में जाकर कपड़े बदलकर लेट गया। क्या हुआ, कुछ परेशान से लग रहे हो। बॉस से पंगा।
वेलैंटाईन डे के दिन हमें कहीं बाहर ले जाने के बदले यहां गुमसुम से लेट गए। क्या हुआ।
अरे वो विशू ने फेसबुक में फिर एक पोस्ट करी है। हां मैने भी देखी। बात हुई विशू से
कैसा है। रूमी को भी विशू से बहुत हमदर्दी और चारू के लिए बहुत गुस्सा। अच्छा देखो
चाय टेबल में रख दी है, सोफे में बैठ कर पी लो। सोफे में बैठे बैठे फिर यादों की शो
रील चल पड़ी।
उस रात ऐसे ही हम सब चाय पी रहे
थे। फोन आया। विशू ने उठाया। दरवाजा बंद करके पांच एक मिनट जाने क्या बातें हुई, विशू
हड़बड़ाते हुए बाहर आया कहा कि चारू की मम्मी का फोन था। चारू ने क्रोसिन और पता नहीं
कौन सी दवाई का पूरा पत्ता खा लिया और अब बेहोश हो गई है। घर के बड़ों ने मना किया कि
रात के दस बज रहे है, 25 किलोमीटर दूर गाजियाबाद जाना ठीक नहीं। मैनें कहा कैसे जाएगा।
भाई चिंता मत करो बस मैं जल्दी ही आ जाउंगा। विशू अगली दोपहर लौट कर आया। बस इतना कहा
कि अगर अब शादी के लिए किसी ने मना किया तो वो पक्का मर जाएगी। और सब की इच्छाओं को
परे धकेलते हुए दो महीने बाद सगाई फिर कुछ महीने बाद वैलेंटाईन डे से दो दिन पहले शादी।
मैं उस दिन बहुत खुश था, बहुत नाचा। नाचते नाचते आंखों से आंसू आ रहे थे। सामने बुआ
दिख रही थी, खुश, आर्शिवाद देते हुए। बुआ होती तो उनका बहू का सपना सच हो रहा होता
पर उनको दुनिया से गए हुए दस साल से ज्यादा समय हो गया था। बुआ का अक्स बहुत देर तक
हर जगह दिखता रहा।
चारू कलाकार थी, अदाकारा जिसने
अनेक गढवाली कुमाउंनी एल्बम्स और गानों में अभिनय किया और हमेशा से ही इसमें आगे बढ़ना
चाहती थी पर विशू ने यह बात उसे अच्छे से समझा दी थी कि हमारे घर फिल्मों में एक्टिंग
नहीं चलेगी। कोई भी काम करो पर एक्टिंग बिल्कुल नहीं। प्यार के दिवानेपन ने चारू से
उसका असली प्यार एक्टिंग छुड़वा दी।सब कुछ बहुत बढिया चल रहा था। या चलते हुए दिख रहा
था।
कई साल की प्रतीक्षा और अनेक
जप टोटको के बाद उनके यहां नन्हे अनु ने किलकारी मारी। जब भी उनके घर जाते बिल्कुल
जेठ के अनुरूप स्वागत और मान मिलता। एक परीकथा जैसे होनी चाहिए वैसे ही चल रही थी।
विशू का अपना रेस्त्रां, कैटरिंग। सुबह सात से रात दस तक काम में तल्लीन। नया नया काम
जमाया था, आराम की कोई गुंजाईश नहीं। अनु ने कहा कि गांव के घर में मन नहीं लगता, बिजी
रहना चाहती हूं तो विशू ने झट से अपने घर के बगल के दो कमरे और लेकर वहां किचन बना
कर टिफिन सेवा शुरू कर दी। कुक नाश्ता और खाना बनाते। डिलीवरी वाला घरघर डिब्बे पहुंचाता।
अनु का काम ऑर्डर और पैसा देखना। यह काम भी बहुत सिर खपाने वाला और पूरा दिन लेने वाला
काम था। अनु भी इस काम में रम गई।
विशु से हफ्ते दो हफ्ते में फोन
से बात हो जाती। हाल चाल पूछ लेते। सब ठीक ठाक, हां भाई सब ठीक ठाक। बेटा अनु ठीक है।
हां भाई सब ठीक। चारू ठीक। हां भाई आजकल मायके में है। क्या हुआ। कुछ नहीं बस ऐसे ही।
अगली बार फोन तो फिर चारू मायके में । पूछा कि यार अब तो अनु के पेपर होने वाले है
अभी तक नहीं आई। भाई आ जाएगी, साली के रिश्ते की बात चल रही है। उसके बाद आ जाएगी।
कुछ हफ्ते बाद, हां भाई चारू आ गई है, मैं ही लेने गया था।
हर महीने दो महीने जब बात करो
चारू या तो मायके में होती या विशू लाने वाला होता। ढ़ाई तीन साल पहले चारू को लेने
जब वह आया तो हमारे यहां ठहरा हुआ था। हमेशा की तरह रात को मैं और विशू छत में टहल
रहे थे। मैनें ही पूछा विशू सब ठीक चल रहा है ना। हां भाई सब ठीक। आवाज में जोश भरने
की कोशिश सफल नहीं हो रही थी। मैनें कहा कि यार अनु बार बार मायके जाती है। वैसे तो
कोई दिक्कत नहीं पर फिर भी अनु के एग्जाम पर भी नहीं आना। हर बड़े त्यौहार में भी वहीं
रहना। विशु क्या छुपा रहा है भाई।
कुछ नहीं भाई, आजकल चारू की तबीयत
ठीक नहीं रहती, चुप चुप रहती है, घर का कोई काम नहीं करती, मेरे कपड़े दिनो दिन बिना
धुले ऐसे ही रहते है, कहती है गांव में नहीं रहेगी। शायद ऊपर की कोई हवा लग गई है।
मैंने कहा हवा वगैरह कुछ नहीं होता, अगर ज्यादा दिक्कत है तो किसी साईक्रेट्रिस्ट को
दिखा दे। नहीं भाई, विशु ने मुझे समझाते हुए कहा, टोना टोटका होता है, हमारे घर के
उपर जो घर है ना वहीं ओमी चाचा का घर, उनकी बहू यह सब जानती है। मैनें टोका, पर वो
क्यों करेगी भाई। चारू तो किसी से ऊंची आवाज में भी नहीं बोलती, घर का सारा काम निपटाती
है, दादा दादी की सेवा भी करती है। वहीं तो भाई, विशु ने मेरा वाक्य पकड़ते हुए कहा,
अब वो वाली भाभी से तो कुछ काम होता नहीं उपर से सास ननद से लड़ती है, इसलिए शायद वो
मेरी चारू पर भी टोटका करके घर का नाश करना चाहती है। मैंने उस रात लाख समझाया पर विशु
को समझ नहीं आया। किसी तरह वह चारू को फिर अपने गांव ले आया। हर तीसरे चौथे रोज उससे
बात होती। बताता कि आज उस बाबा के पास गया, आज तांत्रिक के पास गया। बाबा ने तावीज
दिया है, हम दोनो ने पहना है, रोज रात को दस बजे पीपल के पेड में चावल और सरसों के
तेल को दस मिनट तक एक मंत्र का जाप होने तक चढ़ाना है। भाई फायदा हो रहा है, आज उसने
सब्जी खुद बनाई है। मैं कहना चाह रहा था कि वहम है पर उसके उत्साह से चुप रहना बेहतर
समझा।
कुछ महीने बाद दशहरा बीत गया
था, दिवाली आने वाली थी। दादी अस्पताल में थी, कुल्हे की हड्डी का ऑपरेशन होना था,
विशु यहीं था, अपनी नानी की बहुत फिक्र रहती थी। विशु अमूमन रात को अस्पताल में रहता
था और दिन में मैं रहता था। थोड़ा समय बचता तो हम फिर छत पर बात करने चले जाते। मैंने
पूछा चारू कैसी है। जवाब अपेक्षित था, गाजियाबाद में है। कब से, यहीं महीना भर हो गया।
भाई अभी तो तांत्रिक बाबा का इलाज चल रहा था। विशु ने कहा कि हां चल रहा था, आराम भी
था। फिर क्या हुआ। कुछ नहीं भाई, अब तो वह हमेशा कमरा बंद करके रखती, किसी से कुछ नहीं
बोलना। अभी कुछ दिन पहले मेरी एक शादी की कैटरिंग थी, फोन कर रही थी, जवाब नहीं दे
पाया। रातभर जागकर सुबह रेस्त्रां जाकर सो गया। दोपहर को वापस घर गया तो चारू थी नहीं,
अनु से पूछा तो पता चला कि मम्मी तो बैग उठाकर सुबह ही चली गई थी, कहां, पता नही। फोन
पर फोन लगाए पर स्विच ऑफ, शाम को कनैक्ट हुआ। हैलो चारू, कहां हो, जवाब आया बेटा में
चारू की मम्मी बोल रही हूं। चारू यहीं है। जान पर जान आई, फिर बहुत तेज गुस्सा भी।
उसकी मम्मी ने कहा कि बेटा कुछ दिन यहीं रहने दो, तबीयत ठीक हो जाएगी तब लेने आ जाना।
दिवाली अगले दिन ही थी, मैंने
विशु को सलाह दी कि चल तेरे ससुराल चलते है। सासजी से बात करते है, चारू को समझाते
है। अगले दिन हम दोपहर को ससुराल पहुंच गए। मैंने सासजी से बात शुरू करी कि क्यों चारू
हर थोड़े थोड़े दिन में यहां आ जाती है। उन्होनें कहा कि क्या करें, अब इन दोनो में ही
ना जाने क्या बात होती है कि यह यहां आ जाती हैं। अब मैं मना तो कर नहीं सकती। पर आप
चारू को समझा तो सकती है कि छोटी छोटी बात में ऐसे घर से बिना बताए आना, परिवार में
अच्छा नहीं लगता – मैंने बहुत नम्रतापूर्वक बात आगे बढाते हुए कहा। शायद मां का प्यार
था या कुछ और, सास जी कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी। चारू चाय लेकर आई तो मैंने कहा
बैठो बात करते है। विशु को कहा कि तुम थोड़ा फल वगैरह लेकर आओ। हां चारू, क्या बात है।
मैं यहां जेठ की हैसियत से नहीं, तुम्हारे भाई की तरह आया हूं। जो बोलना है बोलो। नहीं
भय्या मैं वहां गांव में नहीं रहना चाहती, यहीं रहना चाहती हूं। पर क्यों, क्या विशु
कुछ कहता है। मारता है। भय्या, वो सबके सामने मुझे डांटते हैं, एक दिन तो थप्पड़ भी
मारा। उसकी मां ने कहा कि अगर ऐसा व्यवहार होगा तो कैसे रहेगी वहां। मैंने कहा कि बहुत
गलत बात है विशु की। तब तक विशु भी आ गया। मैंने कहा कि यह सब नहीं चलेगा। हमारे परिवार
में पत्नी पर हाथ नहीं उठाते है। भाई मेरी बात तो सुनो। कुछ नहीं सुनना मुझे। विशु
और अपनी सासजी को भरोसा दिलाओ कि आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा। सास जी बोल उठी कि डांट
डपट अकेले में ठीक है पर सबके सामने। विशु थोड़ा गुस्से में बोला छोटी और दादी सब होते
है। वो भी तब जब पापा और दादी के कपडे धोने से मना कर रही थी। चारू ने धीरे से कहा
थप्पड़ भी तो मारा। हां हां कब आज से तीन साल पहले। अगर वह थप्पड़ इतना ही चुभ रहा था
तो तब क्यों नहीं गई। अब क्या हुआ जो तीन साल बाद सब याद आ रहा है। मैंने दोनो को रोकते
हुए कहा बस करो। सास जी से मैंने ही कहा कि मैं विशु की तरफ से माफी मांगता हूं और
भरोसा दिलाता हूं कि इस तरह की कोई घटिया हरकत नहीं होगी। विशु कुछ बोलना चाह रहा था
पर मैंने हाथ दिखाकर उसे रोका। चारू से कहा कि अगर तुम मुझे अपना बड़ा भाई या जेठ जैसे
भी मानती हो तो मेरी बात का मान रखते हुए, कल ही विशु के साथ वापस घर लौट जाओ। चारू
ने कहा कि भाईजी मैं आपको बहुत मानती है, सासजी ने भी कहा तुम तो हमारे घर का ही हिस्सा
हो। तो विशु तय रहा कि कल तुम यहां आओगे और चारू को लेकर जाओगे। ठीक है भाईजी। और हम
वापस घर आ गए। शाम को दिवाली की धूम रही और अगले दिन विशु सुबह ही अपने ससुराल चला
गया। इस बीच उसने तत्काल में जनशताब्दी का टिकट भी ले लिया था। भरोसा था मुझे कि अब
सब ठीक हो जाएगा। दो एक दिन रोज बात होती, जिंदगी पटरी पर लौट आई थी।
एक महीने बाद मुझे किसी काम से
दो दिन के लिए देहरादून जाना था। सुबह पांच बजे ट्रैन स्टेशन आती है। विशु मुझे लेने
स्टेशन आया था। घर करीब 20 किलोमीटर शहरी सीमा से दूर पहाडियों के बीच में बिल्कुल
निश्चल, शांत जगह। तनमन बिल्कुल ताजा हो जाए। चारू की बात याद आई कि एक दो दिन के लिए
तो यह जगह बिल्कुल स्वर्ग है पर अगर रोज ही रहना है, जहां बाजार भी कम से कम 10 किलोमीटर
दूर। गांव भी क्या सिर्फ 10–15 घर, फिर बिल्कुल सुनसान, आवाज आती है तो सिर्फ झिंगुरों
की, बीच बीच में कोई कुत्ता भौंक देता, ध्यान से सुनो तो नदी की आवाज भी आती। अपनी
सोच की खुमारी से टूटते हुए विशु से पूछा अब चारू कैसी है। भाई, ठीक ही है। ही है से
क्या मतलब। भाई अब अगर कोई दिन भर अपने कमरे में सोता रहे, कोई काम ना करें, सुबह की
चाय भी मुझे बनानी पड़े। भाई आपको पता है, कैटरिंग के समय मुझे सुबह पांच बजे निकलना
होता है। अगर उस समय नाश्ता तो दूर चाय भी ना मिले। वो छोड़ो, हफ्ते भर के टंगे कपड़े
भी अगर धुल ना सकें। ठीक चल रहा है भाई। अभी यहां तो है, मायके तो नहीं गई। घर पहुंचे,
तब तक सब लोग उठ चुके थे। चारू ने नाश्ते में परांठे बनाए, छोटी पोहा बना कर लाई। विशु
को कहा यार सब ठीक ही लग रहा है। वो मुस्कुरा भर दिया। थोड़ी देर में कहा कि आप आए हो
तो काम करके दिखाएगी।
अगर किसी घर की सच्चाई जाननी
हो तो उसका रसोईघर और बाथरूम देखना चाहिए। किचन का सिंक रात के बर्तनों से भरा था।
स्लेब में जहां तहां काई नजर आ रही थी। बाथरूम में टब, बाल्टियों में कपडों के ढेर
थे। हां साबुन, शैंपू के अनेक प्रकार जरूर रखे थे। मैंने विशु से कहा भाई छोटी भी अपनी
भाभी का थोड़ा हाथ बंटा सकती है। भाई सुबह उठ कर सबके लिए चाय नाश्ता, अनु के स्कूल
का नाश्ता, कॉलेज जाना, दिन में आकर खाना बनाना, घर को साफ करना। अगर इसको हाथ बंटाना
कहते हो तो हां वह अपनी भाभी का हाथ बंटाटी है।
मैंने विशु को समझाया, देख जहां
तक मुझे लग रहा है चारू को शायद डिप्रेशन है या कोई और मानसिक तनाव, किसी साइक्रेटिस्ट
को दिखा, इससे पहले मामला ज्यादा गंभीर हो जाए। मैं वापस चला तो आया पर लग नहीं रहा
था कि मामला गंभीर रूख ले लेगा।
कुछ एक हफ्तों बाद विशु ने ही
बताया कि साइक्रेटिस्ट को दिखाया है और लक्षणों से डिप्रेशन डिटेक्ट हुआ है। रोज दावाई
खा रही है और काफी फायदा है। अब तो शाम को या छुटटी के दिन कहीं बाहर जाने की जिद करती
है। कभी मॉल, रेस्त्रां, बाजार, नए कपड़े खूब खरीद रही है। उसकी बहन रचु की शादी तय
हो गई है। बस उसकी शॉपिंग भी शुरू हो गई है।
मैंने कहा चलो शुक्र है कि चारू अपने खोल से निकलकर जीवंत तो हो रही है। पर
भाई हर महीने 50 हजार की शॉपिंग पर उड़ाना। ठीक है मेरा रेस्त्रां है, कैटरिंग है। सारे
दिन तो एक जैसे नहीं होते ना। कई महीने तो कोई शादी की बुकिंग नहीं होती। रेस्त्रां
भी बस काम चलाने भर है। कहां से इतना पैसा लाऊं। मैंने समझाते हुए कहा कि कोई बात नहीं
एक आध महीने में धीरे धीरे हाथ खींचना शुरू करना।
कुछ दिन के बाद रचु की शादी का
कार्ड कुरियर से मिला। गाजियाबाद में ही होनी थी। शादी से एक हफ्ते पहले ही विशु, चारू
और अनु गाजियाबाद आ गए थे। पहले ही फोन से बता दिया था कि भाईजी इस बार आपके घर नहीं
आ पाउंगा, बहुत तैयारियां करनी है। वैसे तो दामाद भी बेटे समान होता है और इस बात को
चरितार्थ किया विशु ने रचु की शादी में। टैंट, हलवाई, दहेज का सामान, हर चीज विशु करता
या करवाता। शादी के दिन हम समारोह में पहुंचे। विशु अपनी सास के साथ था। बहन की शादी
है तो चारू को व्यस्त तो होना ही था। बारात स्वागत हुआ फिर जयमाला के समय दुल्हन के
साथ चारू ने भी प्रवेश किया। मैंने विशु से कहा कि चारू के साथ खड़े हो जाओ। फोटोग्राफी
में तुम्हारी फोटो मिस हो जाएगी। पर विशु नहीं गया। मैंने चारू से कहा देखो हम सब आए
हैं, थोड़ा समय हमारे लिए भी निकालो। वह बहाना बनाकर अपनी मां के पास चली आई। पूरे समय
चारू और विशु साथ ना थे।
शादी के अगले दिन विशु घर आया
अनु के साथ पर बिना चारू के। पूछा कहां है। उसने कहा कि अभी घर में कथा वगैरह होनी
है, अगले हफ्ते आएगी। शाम को ही विशु, अनु को लेकर वापस गांव चला गया।
दो–तीन
हफ्ते बाद फोन किया, हाल चाल पूछा, पता चला चारू अभी भी मायके है। जब फोन करो विशु
यहीं कहता चारू मायके में है। करीब पांच छह महीने बाद उसने बताया कि चारू ने वापस आने
के लिए मना कर दिया है, कहा कि अब कभी वापस नहीं आएगी। सास जी क्या कह रही है। क्या
कहेगी, यही कि जो बेटी की मर्जी है, कुछ नहीं कर सकते। मुझे अगले हफ्ते किसी काम से
देहरादून आना ही था। विशु के घर ही रूका। पूछने पर बात गोलमोल करने लगा। पर फिर उसने
बताया कि किसी लड़के का चक्कर लग रहा है। मैंने डांट लगाई बकवास मत कर। नहीं भाई, देखो
मैं तो ज्यादातर समय बाहर ही रहता था, देर रात घर आता था। छुटकी ने दो तीन बार बताया
कि चारू का कोई रिश्तेदार रोज आता है दोपहर में और दोनो घंटो दरवाजा बंद करके रखते।
अनु को भी अंदर आने नहीं देते। विशु आगे बोला, मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। पर जब
कुछ ज्यादा ही सुनने को मिलने लगा तो मैंने अनु से पूछा कि मेरे दुकान जाने के बाद
कोई मामा आते है क्या। अनु ने कहा कि हां पापा वो सर्वेश मामा आते है। आते ही मेरे
कमरे में घुस जाते और मुझे बाहर खेलने को बोलते। मम्मी भी चाय बनाकर कमरे में चली जाती
और मैं बाहर खेलने चले जाता। अनु जो कि सात साल का है, ने आगे बताय कि एक दिन तीन बज
गए थे, भूख लग रही थी। मैंने दरवाजा खटखटाया, कहा कि भूख लग रही है तो मुझे बाथरूम
में बंद कर दिया। एक दिन मुझे रसोई में बंद कर दिया।
अब भाईजी आप बताओ, सब झूठ बोल
सकते है पर छोटा बच्चा तो झूठ नहीं बोल सकता। विशु लगातार बोल रहा था। एक दिन मैंने
दराज में चारू का मायके के सरनेम वाला नया वोटर कार्ड देखा और उसमें लिखा पता उसी लफंगे
सर्वेश के घर का है। मैंने पूछा पर यह वोटर कार्ड बना कैसे होगा, बिना किसी प्रमाण
पत्र के। विशु ने कहा कि वह एक दिन सर्वेश के गांव पहुंचा और पता लगाया कि सरपंच ने
अपने अधिकृत पत्र में लिखा था कि चारू इस घर में रहती है। वोटर कार्ड बनवाने में एक
नियम है कि अगर कोई दस्तावेज ना हो तो गांव के सरपंच का अधिकृत पत्र ही निवास प्रमाण
का काम करता है। और ऐसे यह वोटर कार्ड बना। विशु कहे जा रहा था। बहुत लंबी प्लानिंग
थी। पहले बहन की शादी निपट जाए, मायके ही रूक जाओ और दूसरा वोटर कार्ड बना कर दूसरी
जिंदगी शुरू कर दो। मैंने कहा भाई दूसरी जिंदगी शुरू करना आसान है क्या। तलाक का नोटिस
तो नहीं मिला ना अब तक। भाई, विशु ने एक खाकी लिफाफा दिया, वकील का तलाक का नोटिस था।
मामला गंभीर हो चला था। मैंने अपने एडवोकेट कजिन से बात की, उसने सलाह दी कि अभी नोटिस
ही आया है, कोर्ट से समन नहीं हुआ है। आप या तो पहले केस डाल दो वो भी म्यूचुअल का,
पर इसमें गुजारा भत्ता देना होगा। या फिर उसके केस डालने का इंतजार करों पर उसमें घरेलू
हिंसा शामिल हो सकता है। कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करें।
विशु ने एडवेकेट की सलाह से म्यूचुअल
का केस डाल दिया। ऐसे केस में पुलिस मध्यस्थता केंद्र में तीन बार सुनवाई के लिए जरूर
आना होता है जिसमें दोनों पार्टियां अपना पक्ष रखते है और जरूरत होने पर पुलिस दोनों
को साथ रहने के लिए कह सकती है। पहली सुनवाई में चारू अपनी मां के साथ आई और पूरा सीन
खड़ा कर दिया। विशू मुझे मारता है, खाना नहीं देता, मायके नहीं जाने देता वगैराह वगैराह।
विशू ने सीधे कहा कि क्या पति पत्नी में लडाई नहीं होती। क्या पति हाथ नहीं उठा सकता,
क्या मैं अकेला पति हूं जिसनें अपनी पत्नी को हाथ लगाया। पर खाना नहीं देता समझ नहीं
आया, अरे मैंने तो इसको टिफिन सर्विस का पूरा काम दिया था। अब मैं सुबह 5 से रात
11 तक घर से बाहर हूं। मैं खुद घर में खाना नहीं खा पाता और यह तो 500 टिफिन कुक से
बनवाकर सप्लाई करती है और कहती हैं खाना नहीं देता। रही बात मायके जाने से रोकने की
तो यह लीजिए ऑनलाईन ट्रैन टिकटों का प्रिंट आउट जिससे पता चलेगा कि साल में कितनी बार
यह मायके गई और ज्यादातर मैं भी इसके साथ चलता। चारू ने फिर जोर जोर से बोलना शुरू
किया तो मध्यस्थता इंस्पैक्टर ने चारू को डांटते हुए कहा कि आपने जो बातें कही उसकी
सफाई यह दे चुके है। पति अगर कभी हाथ भी उठाता है तो पत्नी नाराज हो तो समझ में आता
है पर सीधे तलाक का केस डालना। और आपकी बाकी दोनो दलीले कि खाने को नहीं देता या मायके
जाने नहीं देता भी समझ से बाहर है। खैर जो हुआ सो हुआ, अब आप दोनो अगली सुनवाई तक साथ
रहेंगें, किसी को आपत्ति। नहीं सर, मुझे कोई आपत्ति नहीं, विशु ने कहा, बल्कि मैं तो
हमेशा से कह रहा हूं कि घर वापस आ जाओ। हां मैडम जी, जाओ अपने घर, लेडी कांस्टेबल ने
कहा। चारू की मां ने ने कहा कि ना सर यह नहीं जाएगी। माताजी आप तो कुछ ना बोलो, इन्हें
जाना तो पड़ेगा और अगर आप रोकेगी तो एक केस आप पर भी कर देंगे। ठीक है ठीक है मैं जाउंगी,
चारू ने बोला। हां तो अगली सुनवाई अगले महीने 3 तारीख को होगी और आप दोनो को साथ साथ
आना होगा। चारू तेजी से मध्यस्थता केंद्र से बाहर निकली और सीधे इंतजार करती अपनी टैक्सी
में बैठ गई। मां भी पीछे पीछे जाकर गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी चल पडी। विशू दूर से गाड़ी
को जाता देख रहा था।
अगली सुनवाई में चारू नहीं आई,
मध्यस्थता इंस्पैक्टर ने कहा कि इसकी रिपार्ट जज साहब के पास जाएगी कि कहने के बावजूद
ना वो तुम्हारे घर आई और ना आज की सुनवाई में आई। तीसरी सुनवाई भी ऐसे ही एकतरफा रही।
कोर्ट की अगली पेशी में भी नहीं आई तो जज साहब ने कह दिया कि इसकी अगली सुनवाई दो महीने
बाद 15 तारीख को होगी और अगर तब भी दूसरी पार्टी नहीं आई तो फैसला मौजूदा हालात को
देखकर लिया जाएगा।
है भगवान चाय तो बिल्कुल ठंडी
हो गई। घंटा भर पहले रख गई थी, क्या हुआ, कहां खोए हो, रूमी ने जब जोर से कहा तो मेरी
तंद्रा खुली। अरे कुछ नहीं विशु के बारे में सोच रहा था। कल इनके तलाक की आखिरी पेशी
है और फिर इनको तलाक भी मिल जाएगा। गुड्डे गुड़िया का खेल समझ रख है दोनो ने, जब मन
आया शादी कर ली, जैसा जी चाहा तो अलग हो गए। ऐसा कैसे कर सकते है यह दोनो, मैं बड़बड़ाते
ही जा रहा था। रूमी ने कहा देखो अभी खाना खा लो, परेशान होने से कुछ नहीं होने वाला।
आपने कोशिश की, पर जब यह दोनो ही अड़े हुए हो तो क्या कर सकते है। अब खा कर जल्दी सो
जाओ। कल आपको कोर्ट जाना है, विशु को संभालना है।
अगले दिन मैं सीधे कोर्ट परिसर
पहुंच गया। 10 मिनट के बाद विशू भी। अभी सुनवाई में समय था। चारू भी आ गई थी अपनी मां
के साथ। मैंने आंटी जी को नमस्ते किया, प्रत्युत्तर में दूर से ही सिर हिलाया, दोनो
वहीं खड़े रहे। कुछ देर बाद हमारे केस का नंबर आया। जज साहब ने दोनो से पूछा, तलाक चाहते
हो या नहीं, आखिरी मौका। जी सर, तलाक विशू बोला। जज साहब, तलाक, चारू भी बोली। फैसला
सुनाया गया कि घरेलू हिंसा साबित नहीं हुई, मैंटेनेंस की अर्जी डाली नहीं गई। और तलाक
मंजूर करते हुए फैसले पर हस्ताक्षर कर दिए। दोनो पक्षों के लोग बधाई दे रहें थे और
मैं कुर्सी से उठ भी नही पा रहा था।
क्या यही एक प्रेम कहानी का अंत
है, क्या रिश्ते अब इतने कमजोर हो गए है। रिश्ते क्या रेतघडी है कि एक बार फिसलना शुरू
होते है तो फिर खत्म ही होते है। कड़वाहट के छोटे पल ज्यादा समय तक रहते है पर मिठास
का लंबा साथ एकदम खत्म हो जाता है। यह कैसा न्याय है कि रिश्ते बनाने में इतना समय
लगता है पर तोड़ने में सिर्फ एक अदालती फैसला। यह जो घर के बड़े है जो घर के हर मसले
पर अपनी निर्णय देते हुए बात रखते है, क्यों उस समय चुप हो जाते है जब दो रिश्ते आपसी
मनमुटाव की वजह से टूट रहे होते है। अगर सब नाते रिश्तेदार समझदारी दिखाए तो क्या रिश्ते
टूटने से बच नहीं सकते। जन्म जन्म के बंधन की बात करते है तो क्या यही है जन्मों के
एक रिश्ते का अंत……
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