"अखबार नवीस - मधुर चतुर्वेदी का कृतित्व"
मैं रोज के ऑफिस के काम में तल्लीन था की अचानक इण्टरकॉम बजा. सर, लॉ स्कूल से बोल रहा हूँ, आपको जनरल साहब बुला रहे। मुझे एकदम याद आया की जनरल नीलेंद्र कुमार जो की एमिटी लॉ स्कूल के डायरेक्टर है मुझसे एक दिन कह रहे थे की आना मेरे ऑफिस, कुछ बात करनी है. मैं अगले दो दिन उनके यहाँ गया पर किसी ना किसी कारणवश उनसे मुलाकात नहीं हो पाई.
बरहाल मैं फौरन उनके ऑफिस पहुंचा। मेरा और जनरल साहब का ऑफिस एक ही ब्लॉक में है. उनके ऑफिस में पहुंचते ही उनके सेक्रेटरी ने कहा की सर आपको याद कर रहे है. मैंने केबिन का दरवाजा खटकटाया, उन्होंने देखते ही कहा आओ प्रतिमान बैठो।
परिवार आदि का कुशलक्षेम पूछने के बाद, उन्होंने दराज़ से एक किताब निकल कर दी और कहा की पापा को देना। किताब का नाम "अखबार नवीस - मधुर चतुर्वेदी का कृतित्व"। 558 पृष्ठों की पुस्तक में चतुर्वेदी अंकल के 280 चुनिंदा लेख है जो की नवभारत टाइम्स और सांध्य टाइम्स में छपे थे. चतुर्वेदी अंकल का चेहरा एकदम आँखों के आगे घूम गया.
अंकल हमारे ही सोसाइटी में G ब्लॉक में रहते थे और पापा के साथ सांध्य टाइम्स में ही काम करते थे. रोज़ सुबह भूरे रंग का ब्रीफ़केस लिए ऑफिस के निकलते थे. बगल के बस स्टैंड से बस पकड़ना और शाम को 6 या 7 बजे तक वापस भूरे रंग का ब्रीफ़केस लिए वापस आना. सोसाइटी के बच्चो से उनका विशेष स्नेह रहता था. अमूमन हर शाम को कोई ना कोई बच्चों का हुजूम उनके घर पहुँच जाता और अंकल हर बच्चे को बिस्कुट, टॉफ़ी, चॉक्लेट, कोल्ड ड्रिंक देते। बच्चों की हर रोज़ पार्टी हो जाती। पर अंकल अकेले ही रहते थे. मैंने उनके परिवार का कोई नहीं देखा था. पर कभी पापा से पूछा नहीं।
मैं भी पत्रकारिता का कोर्स कर रहा था और अपनी सोसाइटी में जहाँ ज्यादातर पत्रकार ही रहते है, उनसे बातें करके कुछ ना कुछ सीखने की कोशिश करता रहता था. चतुर्वेदी अंकल में मैंने कभी पत्रकारों वाला गुरुर नहीं देखा, हमेशा हंसमुख देखा और इतना मीठा बोलते थे की मानो मिश्री मुँह में रख कर बोल रहे हो. उसी तरह जैसे योगेन्द्र यादव मीठा बोलते है. किसी से ज्यादा बोल चाल नहीं था, पर जिनसे भी था, उनको अपना बना लिया था.
6 जुलाई 2008 को रविवार का दिन था. शाम को पापा के पास फ़ोन आया की मधुर चतुर्वेदी अंकल की डेथ हो गयी. मैं घर में था. अचानक, ऐसे कैसे, क्या हुआ, अनेक सवाल दिमाग में. किसी ने कहा की प्रेस क्लब गए थे, अचानक वहीं गिर गए थे. किसी ने कहा की वहीं पकोड़ी उनके गले में फंस गयी थी. पर अंतिम समाचार यही था की चतुर्वेदी अंकल नहीं रहे.
मशहूर कत्थक नृत्यांगना व पत्रकार साहित्यकार मंजरी चतुर्वेदी उनकी बहन है और मेजर जनरल नीलेंद्र कुमार उनके बड़े भाई है. और उनका घर G-7 प्रेस अपार्टमेंट्स आज भी उनका इंतज़ार कर रहा है.
यादें वैसे कभी जाती नहीं पर कभी कुछ ऐसे मौके मिल जाते है जब अंदर बसी यादें एकदम बाहर आ जाती है.
ऐसा ही आज सात साल बाद हुआ. मधुर चतुर्वेदी अंकल, आप सदैव मेरे दिल में रहेंगे।
प्रतिमान उनियाल
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