यह कैसा धुंआ है। कसैला, काला, गाढा, जिस्म पिघल के गिर रहा है। नहीं यह तो टायर है,, टप टप पिघल रहा है। नहीं पक्का यह जिस्म ही है, पानी की तरह पिघल रहा है,। गाढे, काले पानी की तरह। भक्क से लपटे उसे लपेटे हुए राख कर रही है,, पर नीचे जिस्म पिघल रहा है गाढे, काले पानी की तरह।
ऐ सूरज, क्या बडबडा रहा है,, कैसा धुंआ,, कौन पिघल रहा है, ,मनोज ने सूरज को झंझोडते हुए कहा।
वो दिख नहीं रहा, धुंआ,, कसैला,, काला,, गाढा,, जिस्म पिघल के गिर रहा है,,. सूरज बडबडा रहा था।
सामने कुछ नहीं है मेरे भाई, ,किसी ने बेकार टायर पर आग लगाई है, वहीं जल रहा है, मनोज ने कहा।
बेकार टायर नहीं। बेकार, बेबस, चीखते जिस्म है, सूरज ने धीरे से कहा
क्या हो गया है सूरज तुझे, मनोज ने सूरज को जोर से हिलाकर कहा।
सूरज एकाएक जैसे वापस अपने में आ गया हो, कुछ नहीं यार, जब भी जलता टायर देखता हूं तो वहीं मंजर याद आ जाता है।
कौन सा मंजर मेरे भाई, मनोज ने हैरत से पूछा
वहीं 84 का दंगा, जब बलवाईयों ने मेरे आंखों के सामने एक असहाय बूढे सरदार पर जलता टायर डालकर जला दिया।
पर यह तो 35 साल पुरानी बात है, तब तो तुम बहुत छोटे होंगे, मनोज ने कहा
हां, छह साल का, पर यह दृश्य लगता है 35 साल पुराना नहीं, बल्कि कल ही घटा हो। और यह तब और भी सामने आता है जब भी मैं जलता टायर देखता हूं।
मनोजः कौन था वह सरदार
सूरजः पता नहीं, 6 साल के बच्चे को तो यह भी नहीं पता होता कि सरदार कौन होते है। हमें तो हमेशा कौतुहल होता था कि पगडी के अंदर क्या होता है। मुझे 6 साल में पता चल गया था। जब उसकी पगडी खुल कर लंबे कपडे जैसी सडक पर बिछ गई थी और उसके खुले बाल, उसका रंग, पता नहीं नारंगी था या वह आग का रंग था।मैं बैडरूम की खिडकी पर बैठ यह सब कुछ देख रहा था।
बस यह पता था कि इंदिरा गांधी को गोली मार दी थी। कौन थी इंदिरा गांधी, छह साल के बच्चे को बस इतना पता था कि रोज टीवी पर समाचार में जिसकी तस्वीर सबसे ज्यादा आती है वहीं इंदिरा गांधी है। दिन में रेडियो में सुना था कि इंदिरा गांधी को गोली मार दी, उन्हें मेडिकल इंस्टीटयूट एम्स में ले जाया गया और रात को खबर आ गई कि इंदिरा गांधी की मृत्यु हो गई।
हम बच्चे लोगों को इससे ज्यादा तसल्ली मिली कि स्कूल सात दिन के लिए बंद घोषित हो गए थे।
रात होते होते पापा बहुत चिंतित दिखने लगे। मां को बता रहे थे कि बगल की बस्ती त्रिलोक पुरी में आगजनी होनी शुरू हो गई है। हो सकता है कि दूसरा समूदाय भी बदला लेने के लिए हमारी कॉलोनी में घुस जाएं। इसलिए सभी पापाओं ने निर्णय लिया था कि हर सडक और हर बिल्डिंग के बाहर पहरा देंगें। पूरी रात सभी बडे लोग लाठी डंडें लेकर चक्कर काटना शुरू कर दिया।
अगले दिन से कफ्र्यू लग गया था। इसका मतलब मुझे ऐसे लगा कि हम घर से बाहर खेलने भी नहीं जा सकते थे। मेरी मां जो कि 8 माह की प्रेग्नेंट थी, चैक अप के लिए अपने नर्सिंग होम जो कि त्रिलोक पुरी में था, नहीं जा सकती थी।
मेरे घर के सामने एक मंदिर था, अभी भी है पर मैं अब उस कॉलोनी में नहीं रहता। उसकी दो विशेषताएं शुरू से ही मुझे आकर्षित करती। एक उस मंदिर को बाबा जिसका पेट इतना मोटा था कि हम जैसे दो बच्चे उसमें ढक जाएं। और दूसरा साल में लगने वाला भंडारा जिसमें रात को हम सब बच्चा लोग जीमने जाते। मंदिर के मुख्य गेट के सामने की सडक पर दरियां बिछा कर पत्तल पर पूडी, सब्जी, खीर और दूध मिलता। अब बच्चों में गरीब अमीर ऊंच नीच का ज्ञान तो होता नहीं तो रात आठ बजे ही दोस्तों के साथ जीमने चले जाते।उसके बाद वहीं खडी डीटीसी की खाली बसों पर छुपन छुपाई तब तक खेलते जब तक कि हम दोस्तों की कोई एक मां बुलाने आ जाती।
इलाके में कफ्र्यू लग गया था। सामने मंदिर में सुबह की आरती के बाद कोई चहल पहल नहीं दिख रही थी। मैं जब भी बोर होता तो बेडरूम की खिडकी पर बैठ जाता। छोटी सी खिडकी जिसके पास पापा की पढने की मेज होती थी। मेरा वो सिंहासन था। खिडकी में बैठना, पैर मेज पर, टेक किताबों की। पापा पडोस के घर में थे। वहां किसी सरदार को छुपाया था। मुझे लगा कि बडे लोग भी छुपन छुपाई खेलते है और सरदार वहां छुपने आ गया।बाद में पता चला कि वो डर के मारे छुपने आया था और पापा के साथ बाकी बिल्डिंग वाले उसे तसल्ली देने गए थे। पर इतने बडे आदमी को डर किसका था, पता नहीं और मैं अपने सिंहासन पर जमा हुआ था।
हवा में हल्की ठंडक सी हो गई थी। गुनगुनी धूप जब खिड़की से अंदर आती तो बहुत अच्छा लगता। इंदिरा गांधी के समाचार से सारे अखबार भरे पड़े थे। शहर में कर्फ्यू लग गया था इसलिए कॉलोनी के सारे लोग अपने अपने घर की खिड़कियों सीढ़ियों मुंडेर आदि से खड़े होकर बातें कर रहे थे। सुबह की आरती मंदिर में जो आधे घंटे चलती थी, वह पता नहीं क्यों 5 मिनट में खत्म हो गई थी। खिड़की से मोटे बाबा को देखने का अपना अलग ही आनंद होता था इतना मोटा पेट उस पर भी ना कोई कमीज़, कुर्ता या दुशाला। जब चलते तो पेट भी उनसे एक कदम आगे थल थल हो रहा होता। पर आज तो वह मंदिर के दूसरी तरफ बने अपने घर के आंगन में ही तेज तेज चल रहे थे उनका गोद लिया बेटा श्यामा ही आज मंदिर में बैठा था।
रेडियो में निरंतर समाचार बज रहे थे, यह आकाशवाणी श्रीमती इंदिरा गांधी का आज अंतिम संस्कार किया जाएगा। श्री राजीव गांधी को राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। राजीव गांधी कौन थी मुझे नहीं पता था बस यह पता था कि वह इंदिरा गांधी के बेटे थे।
मंदिर से दूसरी तरफ डीडीए बिल्डिंग का समूह था। उसके पास एक सड़क थी जिसकी दूसरी तरफ त्रिलोकपुरी नाम की बस्ती थी गरीब लोगों की बस्ती जिसमें ज्यादातर लोग कच्चे मकान या छोटे बेढ़ंगे पक्के मकानों में रहते थे सब्जी मंडी ब्लॉक 27 में राशन की सरकारी दुकान थी तो अमूमन हफ्ते में दो एक बार तो वहां जाना होता ही था पर आज कर्फ्यू लगा था तो वहां जाना नामुमकिन था ना मुनासिब विशेष अंतर कुछ जान नहीं पड़ रहा था पर उस तरफ से रह-रहकर धुआं उठता जरूर दिखता। गहरे काले रंग का धुआं, कभी इकट्ठा खूब सारा, कभी थोड़ा थोड़ा।
मंदिर के सामने वाली सड़क पर कोलाहल सा मच रहा था। एक आदमी तेजी से भागकर मंदिर के अंदर घुसा घुसते ही ठोकर लग कर नीचे गिर गया पगड़ी सर से उतर कर नीचे गिर गई थी बाल आधे काले आधे सलेटी कंधे तक झूल रहे थे सलवार कमीज पहने वह बूढ़ा सरदार उठकर बाबा के कमरे की तरफ घुसा पीछे पीछे 810 लोगों का हुजूम चीन के हर एक के हाथ में डंडे श्यामा ने हुजूम को मंदिर के गेट पर ही रोका और कहा यह मंदिर है यहां लड़ाई झगड़ा नहीं कर सकते भीड़ श्यामा को ढकेलती हुई अंदर तक घुस आई बाबा भी बाहर निकले। भीड़ ने ललकारते हुए कहा बाबा उस सरदार को हमारे हवाले कर दो बाबा ने सीधे कहा कि वह मेरी शरण में आया है भीड़ में एक ने श्यामा के ऊपर लाठी जानते हुए कहा बाबा या तो सरदार दे दे या हम इस लड़के को यहीं मार देंगे। बाबा ने कहा अपने हाथों से सरदार के सामने हाथ जोड़ दिए और कहा हो सके तो माफी देना। हुजूम उस बूढ़े सरदार को धकियाते हुए मंदिर के सामने वाली सड़क पर ले आए पहले तो लाठियों से पीटा फिर भीड़ में से एक्ने स्कूटर का टायर उसके गले में डाल दिया दूसरे ने मिट्टी का तेल कुछ सरदार पर डाला कुछ टायर पर।
एकने जलती लकड़ी उसे छुआ दी। वह सरदार आग का गोला बनकर कुछ देर तो तू इधर उधर भागा सड़क पर लौटा, टायर उसके बाद ऐसा चिपक गया था युवा सड़क और टायर भी बीच में भूल रहा था। तेज गाढ़ा धुआं, पिघलता धुआं, चीख में डूबा दम घोटने वाला धुआं। कब चीख और धुआं एक हो जाए पता ही नहीं चलता। आधे घंटे तक धुआं उठता रहा दिन में फिर वहां नजर जाती धुआं दिखता शाम को भी दुआ दिखता रात को लाइट चली गई थी घनघोर अंधेरे में काला गाढ़ा दूंगा दिख रहा था उसकी बदबू पूरे घर में फैली थी। घर में पापा मम्मी को ना दिख रहा था, न कोई बदबू आ रही थी पर मुझे साफ महसूस हो रही थी दम घुट रहा था मुंह में कपड़ा बांधकर भी बदबू दूर नहीं हो रही थी। अगले दिन आंख खुलते ही खिड़की पर उसी सरदार को देखने की कोशिश करने लगा पर नाक में सर धुआं महसूस हो रहा था, काला घोड़ा धुआं।
एक हफ्ते कर्फ्यू
रहा, फिर उसमें सुबह शाम की ढील मिली। मम्मी के साथ सब्जी मंडी जाने का मौका था मंदिर पार करके उसी सड़क पर पहुंचा सरदार को ढूंढने की कोशिश की, काली राख को देखने की कोशिश की पर सिर्फ धुआं ही महसूस हो रहा था। मम्मी से पूछा भी कि जलने की बदबू आ रही है मम्मी ने कहा कि सर्दी का टाइम है लोग लकड़ी टायर जलाते हैं ताकि ठंड दूर हो सके मैंने कहा टायर के साथ तो सरदार भी जलाते हैं त्रिलोकपुरी 27 ब्लॉक जाते-जाते रास्ते में कई कालीर राख के ढेर देखने को मिले 4567
क्या गिन रहा है बेटा मां ने पूछा कुछ नहीं सरदारों को गिन रहा हूं यहां थे वह वहां थे अभी भी मेरी नाक में काला काला धुंआ महसूस हो रहा था फिर सांस लेने में दिक्कत आ रही थी।
15 दिन बाद स्कूल भी खुल गए थे राजीव गांधी अब टीवी पर अपनी मां से ज्यादा नजर आने लगे थे वह 21वीं सदी का सपना दिखाते। वह कंप्यूटर का सपना दिखाते। देश तरक्की की राह पर था 21वीं सदी की राह पर था।
अच्छा वह सब तो ठीक है पर मनोज, यह तो पता यह धुंआ अभी तक तुझे परेशान क्यों करता है। पता नहीं शायद यह मुझे याद दिलाता है तब मैं बच्चा था, इसलिए कुछ नहीं कर पाया। पर तब से जिंदगी में सरदारों ने मेरी जिंदगी में इतना असर किया है लगता है उनकी सेवा करना ही मेरा प्रायश्चित है। किया मैंने कुछ नहीं था, पर फिर भी एक प्रायश्चित मन में था कि मैं उस समय उनको बचाने के लिए कुछ कर नहीं पाया। जब भी मैं किसी गुरुद्वारा जाता हूं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं हर सरदार से इतने अपनेपन से बात करता हूं कि जैसे यह वही सरदार हैं जो उस दिन अपने आपको बचाने आया था और आज मैं उसका साथ देता हूं हो सकता है यही मुझे उस धुंए के श्राप से छुटकारा दिला सके।
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