कविता: आओ हम सब महिला दिवस मनाए
आओ हम सब महिला दिवस मनाए
या यूं कहे कि हम जीते ही उनके लिए है।
उनके बिना हम अधूरे है, पर हमारे बिना वह भी अधूरे है।
साल में एक बार क्यों, बाकि 364 दिन क्या वह लुप्त होती है
जिनसे जीवन की डोर बंधी हो वह तो हर पल, हर क्षण साथ होती है।
हां मैं मां, बहन व पत्नी की ही बात कर रहा हूं
हर नारी तो पूज्यनीय ही होती है,
पर क्या आपने जीवन की डोर की पूजा की है
एक पल ही सही क्या मां, बहन और पत्नी से दो घडी बैठ कर बात की है
सुबह घर से दफ्तर, फिर रात में दफ्तर से घर
सब इसी इंतजार में रहते की वो हमारी सुने, हम उनकी।
बधाई उन सभी महिलाओं को दे जिनका हमारे जीवन में प्रभाव रहा
बधाई उस डाक्टर और नर्स को जिसने मुझे इस दुनिया में पहला कदम रखवाया
उन सभी शिक्षिकाओं को जिन्होनें मुझे लिखना पढ़ना सिखाया
उन सभी स्कूल और कॉलेज की दोस्तों का जिन्होने सुख दुख बांटना सिखाया
उन सभी नारियों को भी बधाई जिन्होने गाहे बिगाहे मुझे दुनियादारी सिखाई
आओ हम सब महिला दिवस मनाए
बधाई पहले उनको दे जो हमारी माता, बहन और पत्नी हैं।
उनका योगदान जीवन में सबसे ज्यादा हैया यूं कहे कि हम जीते ही उनके लिए है।
उनके बिना हम अधूरे है, पर हमारे बिना वह भी अधूरे है।
साल में एक बार क्यों, बाकि 364 दिन क्या वह लुप्त होती है
जिनसे जीवन की डोर बंधी हो वह तो हर पल, हर क्षण साथ होती है।
हां मैं मां, बहन व पत्नी की ही बात कर रहा हूं
हर नारी तो पूज्यनीय ही होती है,
पर क्या आपने जीवन की डोर की पूजा की है
एक पल ही सही क्या मां, बहन और पत्नी से दो घडी बैठ कर बात की है
सुबह घर से दफ्तर, फिर रात में दफ्तर से घर
सब इसी इंतजार में रहते की वो हमारी सुने, हम उनकी।
बधाई उन सभी महिलाओं को दे जिनका हमारे जीवन में प्रभाव रहा
बधाई उस डाक्टर और नर्स को जिसने मुझे इस दुनिया में पहला कदम रखवाया
उन सभी शिक्षिकाओं को जिन्होनें मुझे लिखना पढ़ना सिखाया
उन सभी स्कूल और कॉलेज की दोस्तों का जिन्होने सुख दुख बांटना सिखाया
उन सभी नारियों को भी बधाई जिन्होने गाहे बिगाहे मुझे दुनियादारी सिखाई
आओ अभिनंदन करें विश्व की सभी नारियों का
जिनसे पूरी दुनिया आबाद
पर एक पल के लिए सोचे,
अगर नारी जीवन की रचयिता, तो पुरूष भी जनक है
मां के साथ पिता, बहन के साथ उसका भाई है
पत्नी तभी सौभाग्यवती, जब सुहाग उसके साथ है
कुछ भी कहें पुरूषों का भी बराबर का साथ है
जैसे बिन पाट, तराजू पूरा नहीं
बिन ताला, चाभी का कोई काम नहीं
बिन पहिया, गाडी बेकार है
वैसे ही पुरूष बिन, नारी भी अधूरी है
आओ अब से हर रोज महिला दिवस मनाए
इस बहाने हम उनको और वह हमें मान तो देंगें
हम उनकी और वह हमारी तो सुनेंगे
उनको भी तो पता चलें कि
कितनी जरूरी है वह हमारे लिए और हम उनके लिए
आओ हम सब अब रोज महिला दिवस मनाए
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- प्रतिमान उनियाल